
गुप्त और बेहद सादी शादी: नीरज चोपड़ा का नया कदम
ओलंपिक गोल्ड विनर नीरज चोपड़ा की शादी ने सबको चौंका दिया है—किसी भव्य आयोजन या लिमोजिन की कतार नहीं, सिर्फ पारंपरिक रंग और असलियत के बीच बसी सादगी। हिमाचल प्रदेश की वादियों में हिमाणी मोर से हुए इस विवाह समारोह में न शोर था, न दिखावा और न ही कोई भारी-भरकम दहेज। दोनों परिवारों की आपसी सहमति से सिर्फ 60 नजदीकी सदस्य बुलाए गए।
शादी की पूरी प्रक्रिया तीन दिन चली, जिसमें 14 जनवरी को सगाई, 15 को हल्दी की रस्म और 16 तारीख को फेरे व विवाह की रस्में हुईं। पारंपरिक हरियाणवी लिबास—धोती-कुर्ता, घाघरा-दामन और कंठी—हर शख्स की पहचान बन गए। इन रस्मों में न कोई सोने-चांदी के जेवरों की होड़ थी, न दूल्हा-दुल्हन के महंगे गिफ्ट।
1 रुपये का शगुन और दहेज का विरोध
सबसे बड़ी बात, दहेज विरोध पर नीरज का जोर। हिमाणी के माता-पिता चंद्रम मोर और मीना मोर ने साफ कहा, शादी में सिर्फ 1 रुपये के सिक्के का शगुन देकर रस्म पूरी की गई। न दहेज लिया गया, न कोई वस्तु। यह 1 रुपया भी महज परंपरा निभाने और शुभ शगुन के तौर पर लिया गया, न कि लेन-देन या सामाजिक दबाव के तहत। नीरज के चाचा सुरेंद्र ने इसे परंपरा के खिलाफ क्रांतिकारी कदम कहते हुए समझाया—दहेज प्रथा जितनी जल्दी हटे, उतना बेहतर।
हिमाणी की मां के मुताबिक, यह शादी एक तरह से अरेंज और लव दोनों की मिसाल रही। परिवारों की आपसी सहमति, बच्चों की पसंद और समाज की सोच—all in one। इस खास मौके पर भी दोनों परिवारों ने मीडिया से दूरी बनाए रखी, ताकि शादी सिर्फ निजी पल बनकर रह जाए, न कि कोई सोशल मीडिया तमाशा।
- 60 करीबी रिश्तेदार ही आमंत्रित
- तीन दिन तक पारंपरिक रीति-रिवाज
- शगुन के तौर पर सिर्फ 1 रुपया
- कोई दहेज या उपहार नहीं
- खास तवज्जो हरियाणवी परिधान को
नीरज चोपड़ा जैसी पहचान रखने वाले स्टार के लिए इतने शांत और सादगी भरे आयोजन का चुनाव, आज के समाज के लिए बड़ा संदेश है। इसकी चर्चा हर ओर है—और उम्मीद की जा रही है कि यह मिसाल दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों को तोड़ने में मदद करेगी।