प्रसिद्ध भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी नर्तकी यामिनी कृष्णमूर्ति का निधन: भारतीय शास्त्रीय नृत्य में योगदान

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प्रसिद्ध भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी नर्तकी यामिनी कृष्णमूर्ति का निधन: भारतीय शास्त्रीय नृत्य में योगदान

यामिनी कृष्णमूर्ति: भारतीय शास्त्रीय नृत्य की धरोहर

भारत की प्रसिद्ध भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी नर्तकी मुंगारा यामिनी कृष्णमूर्ति का 3 अगस्त 2024 को 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। यह खबर सभी कला प्रेमियों के लिए एक बडी क्षति के रूप में आई है। यामिनी कृष्णमूर्ति का जन्म 20 दिसंबर 1940 को आंध्र प्रदेश के चितूर जिले के मदनपल्ली में हुआ था। उन्होंने शास्त्रीय नृत्य की शिक्षा और कला की दुनिया में एक प्रमुख स्थान हासिल किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

यामिनी ने बहुत छोटी उम्र से ही नृत्य की कला को अपना जुनून बनाया। उन्होंने अपने नृत्य की शिक्षा प्रसिद्ध रुक्मिणी देवी अरुंडेल के कलाक्षेत्र में प्रारंभ की थी। यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उन्हें भारतीय शास्त्रीय नृत्य के मार्ग पर अग्रसर किया। बाद में उन्होंने कांचीपुरम एल्लप्पा पिल्लई और तंजावुर किट्टप्पा पिल्लई जैसे महान गुरुओं से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया।

प्रमुख योगदान और उपलब्धियाँ

यामिनी कृष्णमूर्ति ने 1957 में मद्रास (मौजूदा चेन्नई) में अपने नृत्य का शुभारंभ किया और अपने शानदार प्रदर्शनों से तेजी से प्रसिद्धि हासिल की। उन्होंने न केवल भरतनाट्यम में बल्कि कुचिपुड़ी और ओडिसी में भी महारत हासिल की। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य की विभिन्न शैलियों में उत्कृष्टता प्राप्त की और उन्हें इन सभी क्षेत्रों में योगदान के लिए पहचाना गया।

यामिनी कृष्णमूर्ति त्रुमाला तिरुपति देवस्थानम की अष्टाना नर्तकी (रेजिडेंट डांसर) भी थीं। इसके अलावा, उन्होंने दिल्ली में यामिनी स्कूल ऑफ डांस की स्थापना की, जहाँ उन्होंने कई युवा नर्तकों को प्रशिक्षित किया और भारतीय नृत्य की परंपरा को आगे बढ़ाया।

पुरस्कार और सम्मान

यामिनी कृष्णमूर्ति को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। उन्हें 1968 में पद्मश्री, 2001 में पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनके योगदान को मान्यता दी और उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के विविध रूपों में अपने अद्वितीय योगदान से सम्मानित किया।

आत्मकथा और विरासत

यामिनी कृष्णमूर्ति की आत्मकथा 'A Passion For Dance' पढ़ने वालों के बीच काफी लोकप्रिय रही। इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन की यात्रा, संघर्ष, समर्पण और नृत्य के प्रति अपने जुनून को साझा किया। यामिनी की कहानी कई युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी और वह हमेशा भारतीय शास्त्रीय नृत्य में एक बेंचमार्क रहेंगी।

यामिनी कृष्णमूर्ति की मृत्यु भारतीय सांस्कृतिक जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके द्वारा दी गई प्रेरणा और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी नृत्य कला, शैली और समर्पण ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।

Savio D'Souza

लेखक के बारे में Savio D'Souza

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।

टिप्पणि (5)
  • Vineet Sharma
    Vineet Sharma
    4.08.2024

    वाह, क्या बात है, यामिनी जी ने तो शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में अपना "पैडलन" बना रखा है।
    उनका जन्म 1940 में हुआ, और आज 2024 में 83 साल की उम्र में वो इस धरती से चले गए, जैसे किसी पुराने फ़िल्म के अंत में किरदार का विदाई दृश्य।
    भजनों की तरह उनका नाम अब भी गूँजता रहेगा, पर क्या हमें इस मौके पर ग़ज़ब का श्रद्धांजलि लिखना चाहिए?
    वास्तव में, आजकल के युवा तो इंस्टा रील्स में नाचते हैं, जबकि यामिनी जी ने भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, ओडिसी तक में अपना पैर जमाया।
    उनकी मंच पर लाइटिंग और सेटिंग्स की बात न करें तो हम किचन के बल्ब से भी ज़्यादा परवाह करेंगे।
    पद्म पुरस्कारों की लकीरें तो उनके रिज़्यूमे में चमक रही थीं, लेकिन क्या इस चमक से उनकी नाचने वाली कुशन की खटिया भी गरम नहीं हो गई?
    डांस स्कूल खोलना? हाँ, उन्होंने किया, पर अब स्कूल वालों को क्विक ट्यूटोरियल्स से डांस सिखाने की ज़रूरत है।
    एक बात तो पक्की है, उनके छात्र अब भी “नाचकर चाय बनाओ” का नारा नहीं फेंकते।
    बड़े बड़े मंचों पर उन्होंने कई बार थिरकते हुए अपना सैर कर दिया, पर फिर भी आजकल के “TikTok” स्टार्स को कूदते नहीं देख पा रहे।
    उनकी आत्मकथा “A Passion For Dance” पढ़ते हुए हमें लगा कि एक फैंटेसी उपन्यास ही पढ़ रहा हूँ।
    पुरानी कहानियों में सच्ची भावना होती है, पर आज के पाठकों को “स्लिपिंग” युक्ति चाहिए।
    हमें तो लगता है कि यामिनी जी का नाचना भी एक डिस्क्लेमर था, “नो डांसिंग अपार्ट फ्रोम द शॉर्ट्स” जैसा।
    पद्म विभूषण का सम्मान – फिर भी एक क्षण में बीती उम्र के साथ।
    शायद अब उनका डांस लाइफ़स्टाइल “ऑफ़लाइन” हो गया है, लेकिन डिजिटल युग में “रिटायरमेंट” की गूँज नहीं।
    सच कहूँ तो, उनका योगदान अब तक के नर्तकों की लाइब्रेरी में एक धूल जैसा बिखर गया है, जिसे सफ़ाई का काम अगले पीढ़ी को करना पड़ेगा।

  • Aswathy Nambiar
    Aswathy Nambiar
    4.08.2024

    ऐसे बड़े कलाकार का जाना हमें यह याद दिलाता है कि हर चीज़ की अस्थिरता ही इसके असली महत्व को परिभाषित करती है।
    यामिनी जी ने अपने नृत्य में जीवन के सारे रंगों को छुआ, जैसे कोई पेंटिंग में सभी शेड्स को एक साथ मिलाता है।
    उनकी कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत और समर्पण का फल कभी भी देर नहीं से आता, बस कभी-कभी टाइमिंग ग़लत हो जाती है।
    जिनकी कला को जीभ पर लाया जाता है, वो अब सिर्फ़ स्मृति में ही नहीं, बल्कि हमारे दिलों की धड़कन में भी बसी हुई है।
    भले ही वे अब नहीं हैं, लेकिन उनका नृत्य आज भी कई युवा दिलों में आग जलाता रहेगा, जैसे खतम ना होने वाला फ़्यूल।

  • Ashish Verma
    Ashish Verma
    4.08.2024

    यामिनी जी ने जो विरासत छोड़ी है वो सच्ची भारतीय संस्कृति की झलक है 😊।
    उनका योगदान न सिर्फ़ भरतनाट्यम में, बल्कि कुचिपुड़ी और ओडिसी में भी गहरा प्रभाव डालता है।
    डांस स्कूल के माध्यम से उन्होंने नई पीढ़ी को प्रेरित किया, जिससे आज के युवा कला में कदम रख रहे हैं।
    हम सभी को उनका सम्मान करना चाहिए और उनके काम को आगे भी बढ़ाते रहना चाहिए 🙏।

  • Akshay Gore
    Akshay Gore
    4.08.2024

    ये सब पुरानी धुंधली यादें तो बस नॉस्टाल्जिया की झलक हैं।

  • Sanjay Kumar
    Sanjay Kumar
    4.08.2024

    हर कलाकार का योगदान हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध बनाता है 🌟।
    आइए हम सभी मिलकर उनकी याद को सजीव रखें और आगे की पीढ़ी को प्रेरित करें 🌈।

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