शाहीद कपूर की 'देवा' मूवी समीक्षा: रोमांच, रहस्य और पुलिस की काली दुनिया का अनावरण

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शाहीद कपूर की 'देवा' मूवी समीक्षा: रोमांच, रहस्य और पुलिस की काली दुनिया का अनावरण

शाहीद कपूर और देव आंबरे का किरदार

भारतीय सिनेमा में एक नया मोड़ 'देवा' फिल्म के रूप में सामने आया है, जिसमें शाहीद कपूर ने देव आंबरे का किरदार निभाया है। यह किरदार एक आक्रामक लेकिन नेकदिल पुलिस अधिकारी का है जो अपने दोस्त और सहयोगी की हत्या के बाद उसके लिए न्याय की लड़ाई लड़ता है। शाहीद कपूर ने अपनी आदत से हटकर कुछ नया पेश किया है, जिससे दर्शकों को पर्दे के पीछे की कई कहानियां देखने को मिलती हैं। उनका प्रदर्शन न केवल आक्रामकता को उजागर करता है, बल्कि उसमें एक तरह की भावनात्मक गहराई भी अनुदानित करता है। उनके लिए यह भूमिका एक चुनौती थी, जिसे उन्होंने सफलता के साथ निभाया है। दर्शकों को लगता है कि शाहीद इस भूमिका में पूरी तरह से डूब गए थे।

रोशन अंद्रेवस का निर्देशन

'देवा' फिल्म का निर्देशन रोशन अंद्रेवस ने किया है, जिन्होंने इसे अपने 2013 की मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' से प्रेरित होकर बनाया है। कहानी का आधार तो वही है, लेकिन इसका निष्कर्ष कुछ हटकर है। निर्देशक ने कहानी को जटिलतम बना दिया है, जिसमें कई रहस्य जानबूझकर डाले गए हैं। इसके बावजूद, कुछ दर्शकों को यह महसूस हो सकता है कि ये रहस्य चाहे कितने भी प्रभावी हों, उन्हें समझना कठिन है। हालांकि, अधिकांश दर्शक क्लाइमेक्स के प्रभाव को महसूस कर पाएंगे जो बहुत ही असाधारण है।

किरदार और कथानक की कमजोरियाँ

फिल्म की कहानी ज्ञानवान होने के बावजूद कुछ मुद्दों से ग्रस्त है, जिनमें कहानी की गति और किरदारों के विकास की खामियां शामिल हैं। विशेषकर, महिला किरदारों को उतना महत्व नहीं दिया गया है जितना देना चाहिए था। पूजा हेगड़े और कुब्रा सेठ जैसे कलाकारों को इस वजह से उतनी प्रभावशाली भूमिकाएं नहीं मिलीं। कहानी के कुछ मोड़ भी यथार्थ से परे लगते हैं, जिससे वह कुछ दर्शकों को भटकाने जैसा लग सकता है। हालांकि, यह खामियां फिल्म के मजबूत बिंदुओं को पूरी तरह से छुपा नहीं पाती हैं।

बैकग्राउंड स्कोर और सिनेमेटोग्राफी

अमित रॉय की सिनेमेटोग्राफी फिल्म के वर्ग में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो दर्शकों को सम्पूर्णता का अनुभव कराती है। जेक्स बीजॉय का बैकग्राउंड स्कोर दर्शकों में उत्तेजना जगाता है, हालांकि, कुछ दृश्य प्रभाव थोड़े असली लग सकते हैं। फिर भी, सिनेमेटोग्राफी और संगीत फिल्म की प्रमुख विशेषताओं में शामिल होते हैं, जो इसे देखने योग्य बनाते हैं।

पुलिस शोषण और नैतिक दुविधाएं

'देवा' केवल एक थ्रिलर नहीं है, यह पुलिस की दुनिया में छिपे काले सच को उजागर करने का भी प्रयास करती है। फिल्म भ्रष्टाचार और सत्ता के गलत उपयोग को दिखाती है, जिससे पुलिस बल के नैतिक पक्ष पर प्रश्न उठने लगते हैं। कहानी एक नायक को नहीं, बल्कि एक सच्चा इंसान दिखाती है जो गलतियों से पाषाण होता है। यह उन दुविधाओं को हाइलाइट करती है, जो पुलिसकर्मियों के जीवन का हिस्सा बन जाती हैं।

ओटीटी वर्ष पर 'देवा' का सफर

'देवा' के ओटीटी अधिकार नेटफ्लिक्स ने हासिल कर लिए हैं, जो इसके बॉक्स ऑफिस पर चलने के बाद स्ट्रीमिंग की योजना बना रहे हैं। यह फिल्म देखना उन लोगों के लिए रोचक होगा, जो मजबूत कहानी और प्रदर्शन से भरी फिल्में पसंद करते हैं। फिल्म ने दर्शकों के लिए एक अलग नजरिया प्रस्तुत किया है, जो संवाद को और भी ज्यादा गहराई दे सकता है।

मनीष तिलक

लेखक के बारे में मनीष तिलक

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।

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