थलावन मूवी रिव्यू: असीफ़ अली और बिजू मेनन की क्राइम थ्रिलर कमजोर स्क्रिप्ट और अजीब डायलॉग्स के साथ फेल

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थलावन मूवी रिव्यू: असीफ़ अली और बिजू मेनन की क्राइम थ्रिलर कमजोर स्क्रिप्ट और अजीब डायलॉग्स के साथ फेल

थलावन: कमजोर स्क्रिप्ट और अजीब डायलॉग्स से प्रभावित होने वाली क्राइम थ्रिलर

जीस जॉय के निर्देशन में बनी 'थलावन' एक क्राइम थ्रिलर है, जिसमें असीफ़ अली और बिजू मेनन प्रमुख भूमिकाओं में हैं। कहानी पुलिस अधिकारियों पर केंद्रित है जो एक गंभीर अपराध की जांच में जुटे हैं।

कहानी और प्रस्तुति में कमजोरी

फिल्म की कहानी एक मजबूत आधार पेश करती है, लेकिन दुर्भाग्यवश इसे सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया है। स्क्रिप्ट में कई खामियाँ हैं, जो दर्शकों को निराश करती हैं। कहानी काफी बिखरी हुई लगती है और एक संगठित ढंग से नहीं प्रस्तुत की गई है।

डायलॉग्स की बात करें तो कई जगहों पर यह अजीब और असंगत लगते हैं, जिससे कहानी की गंभीरता कम हो जाती है। पात्रों की संवाद अदायगी कमजोर है और वे दर्शकों को प्रभावी ढंग से प्रभावित नहीं कर पाते।

तकनीकी दृष्टिकोण

फिल्म के तकनीकी पहलू उल्लेखनीय हैं। सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग की अच्छी कोशिश की गई है। फिल्म के दृश्य अद्भुत हैं और कैमरा वर्क भी प्रशंसा के योग्य है। लेकिन तकनीकी उत्कृष्टता कहानी की कमजोरियों को पूरी तरह से नहीं ढक पाती।

मुख्य कलाकारों की भूमिकाएँ

असीफ़ अली और बिजू मेनन ने अपने किरदारों को सही समझने की कोशिश की है और उनके प्रदर्शन को लेकर कोई कमी नहीं छोड़ी है। दोनों एक्टर्स ने मेहनत की है और उनके अभिनय में ईमानदारी दिखती है। मगर, दुर्भाग्यवश कमजोर स्क्रिप्ट और अजीब डायलॉग्स उनके प्रयासों को बर्बाद कर देते हैं।

फिल्म की असफलता के कारण

यह कहा जा सकता है कि जीस जॉय की 'थलावन' क्राइम थ्रिलर में एक नया अनुभव लाने की कोशिश जरूर करती है, लेकिन कमियों के कारण वह दर्शकों को आकर्षित करने में नाकाम रहती है। कहानी और चरित्र विकास पर ज्यादा ध्यान न देना फिल्म की बड़ी कमियों में से एक है।

फिल्मी दुनिया में नई चीजें आजमाने की हमेशा सराहना की जाती है। लेकिन जब कहानी, पात्र और स्क्रिप्ट कमजोर हो, तो ऐसी फिल्मों का प्रभाव पूर्णतः महसूस नहीं होता। 'थलावन' एक अच्छा प्रयास है, लेकिन यह सर्वोच्च दर्जे की क्राइम थ्रिलर बनने में असमर्थ रहती है।

Savio D'Souza

लेखक के बारे में Savio D'Souza

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।

टिप्पणि (14)
  • Vinod Mohite
    Vinod Mohite
    24.05.2024

    सिनेमैटिक संरचना में एंट्रॉपिक नॉरेटिव फ्रेमवर्क की अनुपस्थिति स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है यह फिल्म का अभिजोग्य अभाव दर्शकों को वैरायटी की कमी महसूस कराता है

  • Rishita Swarup
    Rishita Swarup
    26.05.2024

    अगर हम गुप्त स्वर की बात करें तो थलावन में अंतर्निहित सत्ता संघर्ष व्याख्या से बाहर है जैसा कि कई स्रोतों ने संकेत दिया है यह केवल एक थ्रिलर नहीं बल्कि एलिट वर्ग का सदीय मनोवैज्ञानिक प्रयोग है जाँच के दायरे में कई कट्टर विचार निहित हैं और पर्दे के पीछे के काले राज़ों की झलक मिलती है
    परन्तु सार्वजनिक प्रचार सामग्री इसे सौंदर्यात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है जिससे आम दर्शक को सतह पर ही फंसा रखा जाता है
    इन संकेतों की विश्लेषणात्मक जाँच आवश्यक है और हमें सतह के नीचे छिपी विचारधाराओं को उजागर करना चाहिए

  • Sony Lis Saputra
    Sony Lis Saputra
    27.05.2024

    थलावन का दृश्यात्मक प्रयोग वास्तव में उल्लेखनीय है, क्योंकि कैमरा एंगल्स ने शहर की धुंधी सड़कों को एक रहस्यमयी परत प्रदान की है।
    प्रत्येक शॉट में प्रकाश और छाया का संतुलन नाट्यात्मक प्रभाव को बढ़ाता है, जिससे दर्शक तनाव महसूस करता है।
    फोकस ड्राइवलिन में छोटी-छोटी गति परिवर्तन ने सस्पेंस को निरंतर बनाए रखा है।
    हालांकि, कथा की जटिलता इस दृश्यात्मक सौंदर्य के साथ पूरी तरह तालमेल नहीं बिठा पाई।
    पात्रों के बीच संवाद का प्रवाह अक्सर असंगत प्रतीत होता है, जिससे कहानी में खाई आती है।
    असीफ़ की अभिनय शैली कच्ची है, लेकिन वह अपने किरदार में दिलचस्पी लाने की कोशिश करता है।
    बिजू की बॉडी लैंग्वेज सेटिंग के अनुरूप है, फिर भी वह कभी-कभी पात्र के भाव को पूरी तरह से नहीं व्यक्त करता।
    संपादन की गति तेज़ है, लेकिन कई बार यह अचानक कट्स के कारण निरंतरता को बाधित करता है।
    संगीत स्कोर ने पृष्ठभूमि में कई बार सही माहौल बनाया लेकिन कभी-कभी वह बहुत अधिक उजागर हो जाता है।
    तकनीकी टीम ने विशेष प्रभावों में कोशिश की, लेकिन उनका उपयोग कहानी को सुदृढ़ करने के बजाय विचलित करता है।
    कुल मिलाकर, फिल्म का विज़ुअल एसेट्स दर्शकों को आश्चर्यचकित करने में सफल हैं।
    लेकिन यह आश्चर्य केवल सतही स्तर पर रहता है, क्योंकि मूल कथा में गहराई की कमी है।
    इस पुर्तुगी द्रष्टिकोण से, थलावन को एक संक्षिप्त अभ्यास के रूप में देखना अधिक उपयुक्त है न कि पूर्ण थ्रिलर के रूप में।
    यदि निर्देशक भविष्य में स्क्रिप्ट विकास पर समान स्तर का ध्यान देते, तो फिल्म का प्रभाव काफी बढ़ सकता था।
    अंततः, थलावन एक तकनीकी कौशल का प्रदर्शन है जो कहानी की मूलभूत कमजोरियों से अधूरा रह गया है।

  • anuj aggarwal
    anuj aggarwal
    28.05.2024

    भाई इस फिल्म का स्क्रिप्ट उलझन भरा है कोई तर्क नहीं है एकदम बेजान संवाद है और एक्टिंग तो झपकी की तरह उबाऊ है अब क्या उम्मीद है ऐसी बेकार की प्रोडक्शन से कुछ नया मिलेगा

  • Kirti Sihag
    Kirti Sihag
    30.05.2024

    ओह माय गॉड 😱 इस फिल्म की डायलॉग्स इतनी अजीब थीं कि मस्तिष्क में लाइट फ्लैश हो गई 🤯 असीफ़ और बिजू की कोशिशें सराहनीय थीं लेकिन स्क्रिप्ट की गिरावट ने सारी शोभा खराब कर दी 🙄

  • Vibhuti Pandya
    Vibhuti Pandya
    31.05.2024

    Vinod जी आपके विश्लेषण में कुछ गहराई है लेकिन शायद फिल्म के तकनीकी पक्ष को थोड़ा अधिक महत्व देना चाहिए था, कैमरावर्क वाकई में काबिल‑ए‑तारीफ है

  • Aayushi Tewari
    Aayushi Tewari
    2.06.2024

    Rishita, आपके कथन में कुछ असंगतियां हैं; जबकि फिल्म में निश्चित रूप से ठोस राज़ नहीं दिखते, यह कहना कि यह "सत्ता संघर्ष" का रेफरेंस है, पर्याप्त प्रमाण नहीं देता

  • Rin Maeyashiki
    Rin Maeyashiki
    3.06.2024

    दोस्तों, चलिए थलावन को सिर्फ एक फेलिंग थ्रिलर नहीं मानते, बल्कि इसे एक प्रयोगात्मक मंच मानते हैं जहाँ निर्देशक ने कैमरा एंगल्स के साथ खेला है, लाइटिंग में नाट्यात्मक छापें डाली हैं, और संपादन की गति को तेज़ करके सस्पेंस बनाने की कोशिश की है
    हालांकि कहानी में उतार‑चढ़ाव बहुत ज़्यादा नहीं है, फाइल्म की विज़ुअल्स ने दर्शकों को झकझोर दिया है
    इन तकनीकी तत्वों को देखते हुए, हम कह सकते हैं कि फिल्म ने कुछ हद तक अपने लक्ष्य को प्राप्त किया है
    फिर भी, अगर स्क्रिप्ट और संवाद इतने कमजोर होते तो शायद ये सभी तकनीकी प्रयास बेकार होते
    आशा है भविष्य में निर्देशक अपनी कहानी कहने की क्षमता को भी इसी स्तर पर ले आएँगे

  • Paras Printpack
    Paras Printpack
    4.06.2024

    अरे वाह, किरती जी, इमोजी के साथ इतने गहन विश्लेषण की जरूरत थी क्या? 🙄 भावनाओं की रेलबोर्ड पर चढ़ते हुए, आप वास्तव में फिल्म की समस्या को सॉलिड रूप से नहीं पकड़ पाए

  • yaswanth rajana
    yaswanth rajana
    6.06.2024

    अज्जी, आपके त्वरित निष्कर्ष में तथ्यों की कमी स्पष्ट है; जबकि स्क्रिप्ट में खामियां हैं, यह नहीं कहा जा सकता कि फिल्म पूरी तरह से निरर्थक है क्योंकि तकनीकी पहलू सराहनीय हैं और कुछ दृश्यों में तनाव का निर्माण सफल रहा है

  • Roma Bajaj Kohli
    Roma Bajaj Kohli
    7.06.2024

    देश की सिनेमा में ऐसी फिल्में नहीं चाहिए जो राष्ट्रीय भावना को कमजोर करती हों, थलावन में प्रस्तुत कहानी हमारे सामरिक परिप्रेक्ष्य से दूर है, यह एक बेकार का व्यावसायिक प्रयास है जो दर्शकों को भ्रमित करता है

  • Nitin Thakur
    Nitin Thakur
    9.06.2024

    रोमा भाई सही कह रहे है फिल्म में राष्ट्रीय भावना नहीं दिखी बस व्यावसायिक धंधा है

  • Arya Prayoga
    Arya Prayoga
    10.06.2024

    फिल्म में संभावनाएं थीं पर execution में नीयत बिगड़ी

  • Vishal Lohar
    Vishal Lohar
    11.06.2024

    आर्य, आपकी टिप्पणी में कच्ची सच्चाई छिपी है; हालांकि, हम इस फिल्म के कलात्मक प्रयत्न को पूरी तरह से खारिज नहीं कर सकते जब तक कि हम इसे व्यापक सांस्कृतिक संदर्भ में न देखें, फिर भी आपका निष्कर्ष काफी हद तक व्यवस्थित है

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