21 नवंबर को लागू हुए चार नए लेबर कोड, 29 पुराने कानून खत्म

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21 नवंबर को लागू हुए चार नए लेबर कोड, 29 पुराने कानून खत्म

21 नवंबर 2025 को भारत के श्रम पारिस्थितिकी तंत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव आ गया। केंद्र सरकार ने चार नए लेबर कोड तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए — और इसके साथ ही 29 पुराने श्रम कानून समाप्त हो गए। श्रम मंत्री मनसुख लालभाई मंडाविया ने नई व्यवस्था की घोषणा करते हुए कहा, "ये कोड सिर्फ कानून नहीं, बल्कि लाखों श्रमिकों के जीवन के लिए एक नया वादा हैं।" इस बदलाव का असर सीधे 40 करोड़ श्रमिकों पर पड़ेगा — चाहे वे फैक्ट्री में काम कर रहे हों, ऑटो चला रहे हों, या डिलीवरी ऐप पर गिग वर्क कर रहे हों।

क्या बदला? चार कोड का सार

लागू हुए चार कोड हैं: वेज कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड, और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड. इनमें से हर एक एक अलग दुनिया को जोड़ता है। वेज कोड ने न्यूनतम वेतन की परिभाषा बदल दी — अब बेसिक पे, महंगाई भत्ता और रिटेनिंग अलाउंस सब शामिल हैं। सरकार ने एक "स्ट्रेचडी फ्लोर वेज" तय किया है, जो एक व्यक्ति के बुनियादी जीवन खर्च के आधार पर है। राज्य इससे कम नहीं दे सकते — यह एक निश्चित न्यूनतम गारंटी है।

सोशल सिक्योरिटी कोड ने सबसे बड़ा बदलाव किया है। 2015 में श्रमिकों का सिर्फ 19% ही सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा था। अब यह आंकड़ा 64% हो गया है। यानी लगभग 40 करोड़ लोगों को बीमा, पेंशन, बच्चों की शिक्षा की छूट, और बीमारी के दौरान सहायता मिलेगी। पहली बार, गिग वर्कर्स — जैसे ज़ोमैटो, डिलीवरी बॉय, ओला ड्राइवर्स — को कानूनी मान्यता मिली है। अब एग्रीगेटर्स को एक फंड में अपने कर्मचारियों के लिए योगदान देना होगा।

काम करने का तरीका बदल गया

अब कंपनियों को अलग-अलग रजिस्ट्रेशन, रिपोर्ट्स और लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी। एक सिंगल लाइसेंस, एक सिंगल रिटर्न — यही नया नियम है। इसका मतलब है कि छोटे उद्यमी, MSMEs, और निर्यातकों को अब ब्यूरोक्रेसी के भार से राहत मिलेगी। श्रम विभाग के अधिकारी अब "इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर" बन गए हैं। वे दंड देने के बजाय गाइडेंस देंगे। एक फैक्ट्री मालिक ने कहा, "पहले तो हर तीन महीने में एक ऑडिट आता था। अब एक बार साल में, और अगर कुछ गलत है तो पहले बताया जाएगा।"

श्रम विवादों का समाधान भी तेज हो गया है। अब दो-सदस्यीय औद्योगिक ट्रिब्यूनल होंगे — एक न्यायाधीश और एक श्रमिक प्रतिनिधि। कर्मचारी सीधे इस ट्रिब्यूनल में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। पहले यह प्रक्रिया अक्सर लाखों रुपये और कई साल ले लेती थी। अब यह तीन महीने में हो सकता है।

क्या महिलाओं और प्रवासी श्रमिकों को फायदा होगा?

हां। नए कोड में महिलाओं के लिए समान वेतन और सम्मान की गारंटी दी गई है। अब कंपनियां अपने वेतन स्केल में लिंग भेदभाव करने पर जिम्मेदार होंगी। प्रवासी श्रमिकों के लिए भी एक बड़ी बात है — आधार-लिंक्ड यूनिवर्सल अकाउंट नंबर। यह उनकी सामाजिक सुरक्षा और पेंशन उनके साथ चलेगी, चाहे वे बिहार से मुंबई जाएं या तमिलनाडु से दिल्ली।

निर्यात क्षेत्र के लिए भी एक बड़ी राहत है। अब एक ही रजिस्ट्रेशन, एक ही लाइसेंस, एक ही रिटर्न। पहले एक निर्यातक को चार-पांच अलग-अलग विभागों से अलग-अलग दस्तावेज जमा करने पड़ते थे। अब यह सिंगल पोर्टल पर हो जाएगा।

क्या ये सुधार असली बदलाव लाएंगे?

कई विशेषज्ञ इसे "भारत का श्रम सुधारों का न्यूटन का सेब" बता रहे हैं। पर कुछ चिंतित हैं। एक राज्य स्तरीय श्रम संगठन के नेता ने कहा, "कानून तो अच्छा है, लेकिन अगर राज्य इसे लागू नहीं कर पाएंगे, तो ये कागज पर रह जाएगा।" वास्तविकता यह है कि बहुत से राज्यों में श्रम विभाग के पास न तो काफी कर्मचारी हैं, न ही डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर।

फिर भी, एक बात साफ है — भारत अब उस दुनिया के साथ तालमेल बिठा रहा है, जहां लोग घर बैठे काम करते हैं, ऐप्स से नौकरी पाते हैं, और उनकी आय अस्थिर होती है। पुराने कानून 1940 के दशक में बने थे — जब फैक्ट्री में घंटे भर काम करने वाला आदमी ही श्रमिक माना जाता था। आज श्रमिक एक ड्राइवर है, एक ग्रामीण वेब डिजाइनर है, एक घर पर बच्चों को पढ़ाने वाली महिला है। नए कोड इन सबको शामिल करते हैं।

अगला कदम क्या है?

अब राज्यों को इन कोड्स के नियम बनाने होंगे। उन्हें 18 महीने का समय दिया गया है। इस दौरान केंद्र और राज्यों के बीच बातचीत जारी रहेगी। श्रम मंत्रालय ने कहा है कि श्रमिकों, उद्योगपतियों और संघों का परामर्श जारी रहेगा। अगले छह महीने में एक राष्ट्रीय ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च होगा, जहां कोई भी अपने श्रम अधिकारों के बारे में जान सकेगा।

2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य अब सिर्फ एक नारा नहीं रह गया। ये कोड उस लक्ष्य की नींव हैं। एक ऐसा श्रम बल जो सुरक्षित है, उत्पादक है, और बदलते समय के साथ बदल रहा है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या गिग वर्कर्स को अब पेंशन मिलेगी?

हां। अब गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी कोड के तहत एक अलग फंड बनाया गया है। एग्रीगेटर्स (जैसे ज़ोमैटो, उबर) को अपने कर्मचारियों के लिए हर लेन-देन पर 1-2% योगदान देना होगा। यह फंड पेंशन, बीमा और आपातकालीन सहायता के लिए उपयोग होगा। आधार-लिंक्ड अकाउंट के जरिए यह राशि उनके नाम पर जमा होगी।

महिलाओं के लिए समान वेतन का मतलब क्या है?

अब कंपनियां एक ही पद पर महिला और पुरुष को अलग-अलग वेतन नहीं दे सकतीं। अगर दो लोग एक ही काम कर रहे हैं, तो उनका वेतन समान होना चाहिए। इसका उल्लंघन करने पर कंपनी को जुर्माना लगेगा और श्रम विभाग उसकी लाइसेंस रद्द कर सकता है। यह नियम फैक्ट्रियों से लेकर ऑफिस तक लागू होगा।

छोटे उद्यमी को इससे क्या फायदा होगा?

पहले एक MSME को आठ-दस अलग-अलग रजिस्ट्रेशन और रिपोर्ट्स करनी पड़ती थीं। अब एक ही लाइसेंस और एक ही रिटर्न। इससे उनका कागजी बोझ 70% तक कम हो गया है। साथ ही, अगर कोई श्रमिक शिकायत करता है, तो इंस्पेक्टर पहले गाइडेंस देगा — तुरंत जुर्माना नहीं लगाएगा। यह छोटे उद्यमियों के लिए बड़ी राहत है।

क्या ये कोड राज्यों में समान रूप से लागू होंगे?

नहीं, पूरी तरह से नहीं। केंद्र ने न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा के लिए बेसलाइन तय की है, लेकिन राज्य अपनी जरूरतों के हिसाब से उससे ऊपर जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र या केरल अपने श्रमिकों के लिए अधिक फायदे दे सकते हैं। लेकिन कोई भी राज्य न्यूनतम से कम नहीं दे सकता।

क्या इन कोड्स के लागू होने से बेरोजगारी कम होगी?

सीधे तौर पर नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से हां। जब नियम सरल होंगे, तो नए उद्यम शुरू करना आसान होगा। जब कंपनियां श्रमिकों को बीमा और पेंशन दे सकेंगी, तो वे अधिक लोगों को नियुक्त करने को तैयार होंगी। गिग वर्क को कानूनी मान्यता मिलने से भी नए रोजगार के अवसर खुलेंगे।

क्या ये कोड भारत को विकसित देश बनाने में मदद करेंगे?

हां। विकसित देशों में श्रम कानून लचीले, समावेशी और डिजिटल होते हैं। भारत अब उसी दिशा में बढ़ रहा है। जब लाखों श्रमिकों को सुरक्षा मिलेगी, तो उनकी खपत बढ़ेगी — जिससे अर्थव्यवस्था बलवान होगी। यही आत्मनिर्भर भारत का असली मतलब है — एक ऐसा देश जहां हर श्रमिक सम्मानित और सुरक्षित हो।

Savio D'Souza

लेखक के बारे में Savio D'Souza

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।