जब डॉ. सारा नॉबल, मुख्य खगोल वैज्ञानिक NASA ने कहा कि अगले कुल चंद्रग्रहण की कुलता लगभग रक्तचंद्र के रूप में दिखाई देगी, तो वैज्ञानिक समुदाय और आम जनता दोनों में उत्सुकता की लहर दौड़ गई। यह घटना 3 मार्च 2026 को पूरी दुनिया में दिखाई देगी, लेकिन भारत में इसका ठीक‑ठीक समय और देखने की स्थिति अभी भी कुछ सवाल पैदा करती है।
भविष्य के चंद्रग्रहणों का सारांश
अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union) के डेटा के अनुसार 2025‑2026 के दशक में कुल दो प्रमुख चंद्रग्रहण होंगे:
- मार्च 3, 2026 – कुल चंद्रग्रहण (रक्तचंद्र)
- अगस्त 12, 2026 – कुल सूर्यग्रहण (सूर्य की छाया में पूरी पृथ्वी)
इन दो घटनाओं के बीच, एक एन्युलर सूर्यग्रहण 17 फ़रवरी 2026 को पाया गया, जो शौकिया खगोलविदों के लिए टेलीस्कोप सेट करने का अच्छा अवसर है।
मार्च 2026 का रक्तचंद्र: विस्तार से
Time and Date (Time and Date) के अनुसार, मार्च 2026 का कुल चंद्रग्रहण लगभग 1 घंटे 42 मिनट तक कुलता (totality) का होगा, जिसका मतलब है कि चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की परछाई में डूबेगा और लालिमा का अद्भुत रंग दिखाएगा। कुलता की अवधि 82 मिनट तक पहुंच सकती है, लेकिन यह संख्या अभी अंतिम नहीं है, क्योंकि वायुमंडलीय धूल और ज्वालामुखी के धुएँ का प्रभाव इसे बदल सकता है।
यह घटना 2026 का कुल चंद्रग्रहणपृथ्वी के रूप में वर्गीकृत है, और वैश्विक स्तर पर जहाँ भी रात का समय और चंद्रमा ऊपर होगा, लोग इसे देख सकेंगे।
भारत में देखने की संभावना
भारत में अधिकांश क्षेत्रों में इस रक्तचंद्र का दृश्य भाग्यशाली है, क्योंकि ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार रात 03:45 UTC से लेकर 07:15 UTC तक भारत में (IST 09:15‑13:45) चंद्रमा पूर्णतः दृश्य रहेगा। हालांकि, हिमाचल प्रदेश के उत्तर‑पश्चिमी भागों में सूर्योदय के समय चंद्रमा थोड़ा नीचे हो सकता है, जबकि दक्षिणी समुद्री तटों पर यह पूरी रात चमकता रहेगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अभी तक आधिकारिक टाइम‑टेबल जारी नहीं किया है, लेकिन ISRO की वेबसाइट पर आने वाले महीनों में अपडेट मिलने की संभावना है। स्थानीय समाचार चैनलों ने भी संकेत दिया कि कक्षा‑विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. अनीता शर्मा इस घटना को लाइव टेलीविज़न पर प्रसारित करने की योजना बना रही हैं।

विशेषज्ञों की राय
डॉ. सारा नॉबल ने बताया कि "रक्तचंद्र के रंग में बदलाव मुख्यतः वायुमंडलीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे कि एशिया‑पैसिफिक क्षेत्र में सर्दियों के दौरान बढ़ा हुआ धूल स्तर या ज्वालामुखी विस्फोट के बाद का धुआँ।" इस बात को समर्थन देते हुए, डॉ. मनोज सिंह, जो अग्निकुण्ड विश्वविद्यालय के खगोलभौतिकी विभाग में प्रोफेसर हैं, ने कहा कि "2026 का रक्तचंद्र वैज्ञानिकों के लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला है, जिससे हम पृथ्वी के वायुमंडलीय आयोनीकरण और धूल स्तर का बारीकी से अध्ययन कर सकेंगे।"
एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इस रक्तचंद्र के दौरान टेलीस्कोप से ली गई फोटो में मौसमी एलिवेशन (Moon's altitude) लगभग 45° पर होगी, जो धुंधले नज़रिए को कम कर देता है और स्पष्ट रेखांकन संभव बनाता है।
भविष्य के अन्य खगोलीय घटनाएँ
मार्च 2026 के रक्तचंद्र के बाद, अगस्त 2026 में एक कुल सूर्यग्रहण होगा, जो भारत के पश्चिमी भागों में मुख्यधारा में देखा जाएगा। इसके साथ ही, अक्टूबर 2025 में "हावर्ड मोन" (Harvest Moon) के रूप में एक सुपरमून आएगा, जिसका आकार सामान्य चंद्रमा से लगभग 14% बड़ा होने की संभावना है। यह सुपरमून फोटो‑सत्र और रात्री पिकनिक के शौकीनों के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करेगा।
सारांश में, भारत के दर्शकों को 2025‑2026 के अंतराल में कई रोमांचक खगोलीय घटनाएँ मिलने वाली हैं, और इस बार का रक्तचंद्र विशेष रूप से वैज्ञानिक और आम जनता दोनों के लिए यादगार साबित होगा।

मुख्य तथ्य
- रक्तचंद्र की कुलता: अनुमानित 82 मिनट (समान्य सीमा 1 घंटा 15 मिनट‑1 घंटा 47 मिनट)
- घटना की तिथि: 3 मार्च 2026
- दृश्यता: भारत में 09:15‑13:45 IST के बीच, अधिकांश क्षेत्रों में पूर्ण दृश्यता
- प्रमुख स्रोत: NASA, Time and Date, International Astronomical Union
- विशेषज्ञ टिप्पणीकार: डॉ. सारा नॉबल (NASA), डॉ. अनीता शर्मा (ISRO), डॉ. मनोज सिंह (अग्निकुण्ड विश्वविद्यालय)
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
भारत में रक्तचंद्र कब दिखेगा?
रक्तचंद्र 3 मार्च 2026 को रात के लगभग 09:15 IST से 13:45 IST तक भारत के अधिकांश हिस्सों में दृश्य होगा। उत्तर‑पश्चिमी उच्च इलाकों में कुछ देर पहले चंद्रमा क्षीण हो सकता है, पर बाकी क्षेत्रों में पूर्णता देखी जा सकेगी।
क्या इस रक्तचंद्र की कुलता 82 मिनट होगी?
डॉ. सारा नॉबल के अनुसार, कुलता की अनुमानित अवधि 82 मिनट है, पर यह वायुमंडलीय धूल, ज्वालामुखी धुएँ और बादल कवर पर निर्भर करती है। वास्तविक समय में कुछ मिनट घट या बढ़ सकते हैं।
क्या भारत में विशेष कोई आयोजन होगा?
ISRO और भारतीय विज्ञान संस्थान ने अभी तक आधिकारिक कार्यक्रम घोषित नहीं किया है, लेकिन कई निजी एस्टेरॉमी क्लब और स्कूल इस अवसर पर लाइव स्ट्रीम और टेलीस्कोप संचालन की योजना बना रहे हैं।
रक्तचंद्र के दौरान कौन‑से वैज्ञानिक प्रयोग संभव हैं?
रक्तचंद्र के दौरान वायुमंडलीय रैलेइ भिन्नता, चंद्र सतह पर तापमान परिवर्तन, और पृथ्वी की छाया के प्रभाव को सटीक उपकरणों से मापा जा सकता है। अनुसंधानकर्ता इस डेटा को जलवायु मॉडल और वायुमंडलीय रासायनिक घटकों के अध्ययन में उपयोग करते हैं।
भविष्य में और कौन‑सी प्रमुख खगोलीय घटनाएँ होंगी?
अगस्त 12 2026 को कुल सूर्यग्रहण, अक्टूबर 2025 में सुपरमून (Harvest Moon), और फरवरी 17 2026 को एन्युलर सूर्यग्रहण—इन सबका मिलाजुला कैलेंडर खगोल प्रेमियों को आगे कई रोमांचक अवसर देगा।
Amar Rams
10.10.2025वर्तमान में प्रकाशित किए गए अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के डेटाबेस के अनुसार, मार्च 2026 का रक्तचंद्र एक उच्च-अवधि कुलता (totality) प्रदर्शित करेगा, जिसका पृथ्वी‑चंद्र प्रणाली पर संभावित प्रभाव आर्णविवेचनात्मक (astro-geophysical) अध्ययन हेतु उल्लेखनीय है। इस ग्रहण में एरियल सैटेलाइट इमेजिंग के साथ साथ ग्राउंड‑बेस्ड स्पेक्ट्रोमेट्री डेटा संग्रह का समकालिक संचालन अत्यावश्यक होगा। दृष्टि‑विज्ञान के संदर्भ में, 45° के मध्यवर्ती एलिवेशन पर प्रकाश‑वहन हेरफेर (scattering) की आवृत्ति विशिष्ट रूप से लाल-विवरित स्पेक्ट्रा उत्पन्न करेगी। भारत में दृष्टि‑परिस्थिति के मॉडलिंग से पता चलता है कि आयामिक बाधा (air‑mass) की परिवर्तनशीलता कुलता के प्रारम्भिक चरण में मापनीय विचलन उत्पन्न कर सकती है। अतः, इस अवसर का उपयोग प्रायोगिक वैज्ञानिक प्रमेय की पुष्टि हेतु किया जाना चाहिए।