90 वर्ष की आयु में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटील का शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025 को सुबह 6:30 बजे अपने निवास 'देवघर' में लातूर, महाराष्ट्र में लंबे बीमारी के बाद निधन हो गया। उनकी मृत्यु आयु से जुड़ी जटिलताओं के कारण हुई, जिसके बारे में अभी कोई आधिकारिक चिकित्सा जानकारी नहीं जारी की गई। लेकिन परिवार के सूत्रों के मुताबिक, वे कई महीनों से घर पर देखभाल के अधीन थे। उनके निधन की खबर पर देश भर में शोक की लहर दौड़ गई।
एक ऐसा नेता जिसने इस्तीफा देकर जिम्मेदारी का नमूना दिखाया
शिवराज पाटील का राजनीतिक इतिहास भारत के आधुनिक राजनीति के सबसे गहरे अध्यायों में से एक है। 1972 से लेकर 2004 तक वे लातूर से सात बार लोकसभा के सांसद रहे — एक ऐसा रिकॉर्ड जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ पाया। 1991 से 1996 तक वे लोकसभा के अध्यक्ष रहे, जहां उन्होंने संसदीय प्रक्रियाओं में कई सुधार लाए। लेकिन उनकी यादें उस दिन से जुड़ी हैं, जब उन्होंने गृह मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया — 26 नवंबर, 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद।
उस दिन, देश की सुरक्षा बाधित हुई। आतंकवादियों ने टाज महल होटल, ओवर टाइम रेस्टोरेंट और चर्चगेट रेलवे स्टेशन जैसे जगहों पर हमले किए। 166 लोग मारे गए। शिवराज पाटील के गृह मंत्रालय पर आरोप लगे कि जानकारी नजरअंदाज की गई और प्रतिक्रिया धीमी रही। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि आपातकालीन बैठकों के दौरान वे बार-बार कपड़े बदल रहे थे — एक ऐसा दृश्य जो बाद में उनकी नेतृत्व शैली के लिए एक प्रतीक बन गया।
लेकिन उन्होंने अपने इस्तीफे के साथ एक और बात भी कह दी — जिम्मेदारी का सबसे बड़ा सबक। 30 नवंबर, 2008 को उन्होंने कहा: "मैं अपने आप को जिम्मेदार मानता हूं।" उस दिन वे एक राजनेता नहीं, एक आदमी बन गए।
एक शांत नेता, एक गहरा असर
उनके साथ काम करने वाले कई राजनेता उन्हें "शांत, संयमित, बिना शोर के अपने विचार रखने वाले" के रूप में याद करते हैं। एक अज्ञात साथी ने कहा: "हम 45 सालों से परिवार दोस्त रहे। वे झूठ नहीं बोलते थे, गुस्सा नहीं करते थे, और हमेशा दूसरों के लिए पहले आते थे।"
उनकी निर्णय लेने की शैली आज के ट्वीट-प्रेमी युग में अनोखी लगती है। वे बयान नहीं देते थे, बल्कि काम करते थे। उन्होंने 2006 के मालेगांव बम विस्फोट और पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम हिंसक घटनाक्रम के दौरान भी आलोचना का सामना किया। लेकिन उनकी शांति और दृढ़ता को कोई नकार नहीं सकता।
अंतिम वर्ष: वापसी और शांति
2010 में, उन्हें पंजाब का राज्यपाल और चंडीगढ़ का प्रशासक बनाया गया। वहां उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में छोटे-छोटे सुधार किए। 2015 में उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली। उसके बाद उन्होंने लगभग कोई जनसामान्य गतिविधि नहीं की।
उनके घर के बाहर लातूर में शुक्रवार को भीड़ जमा हो गई। कांग्रेस के कार्यकर्ता, स्थानीय निवासी, और यहां तक कि विपक्ष के कुछ नेता भी उनके अंतिम सम्मान में आए। कुछ लोग रो रहे थे। कुछ चुपचाप फूल रख रहे थे। एक बूढ़ी महिला ने कहा: "हमने उन्हें राजनेता नहीं, एक पड़ोसी के रूप में जाना।"
मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया: "श्री शिवराज पाटील जी के निधन से दुखित हूं। वे एक अनुभवी नेता रहे, जिन्होंने विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री, महाराष्ट्र विधानसभा और लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सेवा दी।"
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा: "उनका जीवन निष्ठा, सेवा और नैतिकता का जीवंत उदाहरण है।"
भाजपा के पूर्व राज्यपाल और राजनेता ने भी उनकी याद में एक शब्द कहा: "कम से कम एक नेता ने गलती के लिए जिम्मेदारी ली।"
मृत्यु के बाद क्या होगा?
पाटील के निधन के बाद उनके निवास स्थान देवघर में अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गई है। उनके परिवार ने घोषणा की है कि उनका अंतिम संस्कार शनिवार को लातूर में होगा। राज्य सरकार ने एक दिन का शोक घोषित किया है।
उनके निधन के बाद यह सवाल उठ रहा है: क्या आज के राजनीतिक वातावरण में कोई और गृह मंत्री अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करके इस्तीफा दे पाएगा? या अब सब कुछ राजनीतिक लाभ के नाम पर छिपा दिया जाएगा?
एक जीवन, एक विरासत
शिवराज पाटील का जीवन केवल एक राजनेता का नहीं, बल्कि एक आदमी का है जिसने जब देश ने उसे जवाबदेह ठहराया, तो उसने अपने आप को जवाबदेह ठहराया। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बोलते नहीं थे — बल्कि उनके काम बोलते थे।
उनके निधन के बाद, लातूर के एक बुजुर्ग ने कहा: "हम उनके लिए रोए नहीं, उनके लिए गर्व कर रहे हैं।"
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
शिवराज पाटील की राजनीतिक उपलब्धियाँ क्या थीं?
शिवराज पाटील ने 1972 से 2004 तक लातूर से सात बार लोकसभा के सांसद के रूप में कार्य किया। 1991-1996 तक वे लोकसभा के अध्यक्ष रहे और 2004-2008 तक गृह मंत्री रहे। उन्होंने 1972 और 1978 में विधानसभा से भी चुनाव जीता। उन्होंने भारतीय संसद में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सुधार किए।
26/11 हमले के बाद उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया?
26/11 आतंकी हमले के बाद गृह मंत्रालय पर आरोप लगे कि सुरक्षा जानकारी को नजरअंदाज किया गया और प्रतिक्रिया धीमी रही। पाटील ने इसके लिए नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए 30 नवंबर, 2008 को इस्तीफा दे दिया — एक ऐसा कदम जो आज भी नैतिक नेतृत्व का उदाहरण माना जाता है।
उनकी मृत्यु के बाद राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
महाराष्ट्र सरकार ने शिवराज पाटील के निधन पर एक दिन का शोक घोषित किया है। उनके अंतिम संस्कार के लिए लातूर में विशेष व्यवस्था की गई है। राज्य सरकार ने उनके जीवन की उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए एक स्मारक और उनके नाम पर एक शिक्षा संस्थान के निर्माण की संभावना पर भी विचार किया है।
शिवराज पाटील के जीवन का सबसे बड़ा सबक क्या है?
उनका सबसे बड़ा सबक यह है कि जिम्मेदारी कभी भी राजनीतिक लाभ के लिए छिपाई नहीं जा सकती। उन्होंने दिखाया कि एक नेता अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकता है — और ऐसा करने से उसकी इज्जत बढ़ती है, न कि घटती।
Divyanshu Kumar
13.12.2025शिवराज पाटील जी ने जो किया, वो आज के राजनीति में दुर्लभ है। इस्तीफा देना बहादुरी का काम है, न कि कमजोरी। आज के नेता तो गलती को दूसरों के ऊपर झेल देते हैं।