अमूल की नई दूध कीमतें: क्या बदला?
गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF), जो अमूल ब्रांड का प्रबंधन करता है, ने 1 मई, 2025 से अमूल के सभी दूध उत्पादों की कीमत में अमूल दूध कीमत वृद्धि के तौर पर 2 रुपये प्रति लीटर का इजाफा करने का एलान किया। इससे अमूल गोल्ड, अमूल ताज़ा, अमूल स्लिम न ट्रिम, अमूल चाय मज़ा और अन्य वेरिएंट की MRP में 3‑4 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। उदाहरण के तौर पर, 500 ml की अमूल गोल्ड पैकेज अब 34 रुपये होगी और 1 लीटर की पैकेज 67 रुपये तक पहुंच गई है। शाक्ति, काऊ माइल्क और बफ़ैलो माइल्क की नई कीमतें भी समान रूप से बढ़ी हैं।

कीमत बढ़ोतरी के पीछे के कारण और असर
यह मूल्य संशोधन मदर डेयरी के 30 अप्रैल को किए गए समान कदम के बाद आया, जिससे दो बड़े दुग्ध ब्रांडों ने 48 घंटे के भीतर कीमतें बढ़ा दीं। GCMMF ने बताया कि उत्पादन में उपयोग होने वाली कच्ची सामग्री, जैसे फ़ीड, रखरखाव और बिजली की लागत में लगातार बढ़ोतरी हुई है। साथ ही, पिछले साल के दौरान 36 लाख मिलियन दूध उत्पादकों को मिलने वाली खरीद मूल्य भी समन्वित रूप से बढ़ी है, जिससे वितरकों को अतिरिक्त बोझ झेलना पड़ रहा है।
उद्योग विश्लेषकों का मानना है कि यह ‘कोऑर्डिनेटेड प्राइसिंग’ केवल दो ब्रांडों तक सीमित नहीं है; यह पूरे दुग्ध सप्लाई चेन में दबाव को दिखाता है। कच्चे दूध की कीमत में इजाफा, ट्रांसपोर्ट के बढ़ते लागत, और पैकिंग मटेरियल (प्लास्टिक, एल्यूमिनियम) की महँगी होने के कारण उत्पादन लागत में 10‑12 प्रतिशत तक का उछाल देखा गया है। इससे अंत में खुदरा विक्रेताओं को भी उच्च MRP लागू करना पड़ रहा है।
उपभोक्ताओं के लिए यह बदलाव खासा महंगा साबित हो सकता है। कई परिवारों के बजट में पहले से ही सब्जी, तेल और गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के कारण दबाव है। दुग्ध उत्पादों की कीमत में 2 रुपये का इजाफा, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ घर में दूध की दैनिक आवश्यकता अधिक होती है, खर्च को स्पष्ट रूप से बढ़ा देगा। आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर इस प्रकार की मूल्य वृद्धि वार्षिक स्तर पर जारी रहती है तो भारतीय घरों की ‘कुशलता’ (affordability) पर गहरा असर पड़ेगा।
सुरक्षा के लिहाज़ से, कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार किसान को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठा रही है, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में सुधार और लॉजिस्टिक सपोर्ट बढ़ाना। परन्तु, फिस्कल नीति और मौद्रिक नीति के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कीमतों में इजाफा को रोकने के लिए कई बार सब्सिडी या कर में छूट देने का निर्णय लेना पड़ता है।
भविष्य में क्या होगा? यदि इनपुट लागत में और कोई बड़ोतरी नहीं आती, तो दुग्ध कंपनियों को दोबारा मूल्य संशोधन करना पड़ सकता है। दूसरी ओर, यदि सरकार कच्चे दूध की कीमतों को स्थिर रखने में सफल होती है, तो इस दौर की मूल्य वृद्धि को सीमित किया जा सकता है। इस बीच, उपभोक्ताओं को सलाह दी जा रही है कि वे विभिन्न ब्रांडों की कीमतों की तुलना करें, प्रमोशन और पैकेजिंग विकल्पों का उपयोग करें, और संभव हो तो स्थानीय स्तर पर सीधे वैध कले या फ्रेम से खरीदारी करके अतिरिक्त खर्च बचा सकते हैं।
Ravi Atif
23.09.2025दो रुपये की बढ़ोतरी से घर की बजट में थोड़ा झटका लगेगा 😅
Krish Solanki
30.09.2025अमूल की इस “प्राइस हाइक” को एक नाजुक आर्थिक जाल के रूप में देखा जाना चाहिए। उत्पादन लागत में हुए उतार-चढ़ाव को अतिरंजित कर, कंपनियां उपभोक्ता भरोसे का शोषण कर रही हैं। फॉर्मली, यह कदम मार्केट में महंगाई को और तेज़ करने वाला एक प्रॉक्सी एन्हांसमेंट है। इस तरह की नीति का दीर्घकालिक प्रभाव गंभीर सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकता है।
SHAKTI SINGH SHEKHAWAT
7.10.2025जब सरकार और बड़े दूध एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव एक साथ मिलकर कीमतें बढ़ाते हैं, तो यह सिर्फ बाजार की प्रतिक्रिया नहीं बल्कि कोई छिपा हुआ नियोजन लगता है। इस “समन्वित प्राइसिंग” के पीछे संभावित तौर पर राजकीय दवाब और अंतरराष्ट्रीय डेरिवेटिव लेनदेन हो सकते हैं। कॉर्पोरेट एलीट के पास ऐसी शक्ति है कि वह किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य के वादे के साथ सीनियर बोर्डरूम में निर्णय ले सके। इस प्रकार की आर्थिक हेराफेरी का लक्ष्य न केवल उपभोक्ता वर्ग बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी नियंत्रित करना हो सकता है। अतः, हमें इस बदलाव को सतर्कता से देखना चाहिए।
Vinod Mohite
13.10.2025डायनामिक प्राइस मॉड्यूल इन्फ्लुएंसेज को फ्यूचर प्रोएक्टिवली एनालाइस्ड करना आवश्यक है
फीड कोस्ट एट्रिब्यूशन और सप्लाई चैन इंटरेक्शन पर एडेप्टिव स्मूथिंग लागू करना चाहिए
Rishita Swarup
20.10.2025अमूल की कीमत बढ़ाने की पृष्ठभूमि में कई अज्ञात कारक छिपे हो सकते हैं। पहला, राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत दुध बाजार में प्लेइंग फील्ड को नियंत्रित करने वाला एक गुप्त एलिट समूह है। दूसरा, अंतरराष्ट्रीय डेयरी कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की जटिल मैकेनिज्म इस अड़चन को उत्प्रेरित कर रही है। तीसरा, मौजूदा सरकारी नीतियों में “न्यूनतम समर्थन मूल्य” को टेढ़ा-मेढ़ा करने का इरादा रह सकता है। चौथा, स्थानीय कलेक्टरों और मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं के बीच शक्ति असंतुलन को उजागर करने की योजना है। पाँचवा, बड़े पैमाने पर प्लास्टिक पैकेजिंग की बढ़ती लागत को आधे में सार्थक करने का झूठा बहाना है। छठा, इस सभी को एक “आर्टिफिशियल इनपुट कॉस्ट इन्क्रीज” की कथा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सातवां, कई निजी एग्री-टेक फंड इस कीमत वृद्धि से सीधे लाभ उठा रहे हैं। आठवां, इस फंडों के सहयोगी प्रोडक्शन यूनिट्स को अधिशेष पोटेंशियल मिल रहा है। नौवां, मीडिया फ्रेमिंग द्वारा इस बदलाव को “आवश्यक” कहा जाता है। दसवां, उपभोक्ता वार्तालापों में इस तथ्य को हटाने की कोशिश की जा रही है। ग्यारहवां, सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर विभिन्न बॉट नेटवर्क इस मुद्दे को दफ़ा कर रहे हैं। बारहवां, इस सब के पीछे “वॉल्टेज नियमन” नामक एक प्लान है जो कि सिर्फ बड़े बैंक के एग्जिक्यूटिव्स को ही पता है। तेरहवां, यह नियमन न केवल कीमतें बल्कि आय वितरण को भी नियंत्रित करता है। चौदहवां, इस प्रक्रिया में छोटे किसान भी अनजाने में आपूर्ति शृंखला के गैंट्री को गंभीर नुकसान पहुँचा रहे हैं। पंद्रहवां, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम इन सूक्ष्म संकेतों को पढ़ें और जागरूक रहें। सोलहवां, अंत में, अगर यह योजना सफल रहती है तो राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है और आम जनता को भारी बोझ उठाना पड़ेगा।
anuj aggarwal
27.10.2025अमूल ने खुद को महँगाई के मुँह में घसीटा है, लेकिन वास्तविक कारण कच्चे दूध की कीमतों की गड़बड़ी है। इस तरह की सतही वृद्धि से अंत में उपभोक्ताओं को ही नुकसान होगा।