बॉर्डरलैंड्स मूवी रिव्यू: प्रिय वीडियो गेम का निराशाजनक अनुकूलन

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बॉर्डरलैंड्स मूवी रिव्यू: प्रिय वीडियो गेम का निराशाजनक अनुकूलन

बॉर्डरलैंड्स मूवी रिव्यू: प्रिय वीडियो गेम का निराशाजनक अनुकूलन

वीडियो गेम 'बॉर्डरलैंड्स' के प्रशंसकों के लिए 2024 की फिल्म अनुकूलन एक बड़ी निराशा साबित हुई है। एलि रोथ द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने अपने संपूर्ण स्टार कास्ट और बड़े बजट के बावजूद, गेम के मूल तत्वों को पकड़ने में विफल रही है। जो खेल प्रेमियों के दिलों में बसा है, उस जादू को फिल्म ने बिल्कुल भी नहीं उतारा।

सपनों को तोड़ती कहानी

फिल्म की कहानी के केंद्र में एक बाउंटी हंटर, लिलिथ (केट ब्लैंचेट द्वारा निभाई गई), की यात्रा है जो एटलस कॉर्पोरेशन की बेटी, टीना, को अंतरिक्ष स्टेशन से बचाने के अभियान पर है। लेकिन, इस प्रक्रिया में, फिल्म कहीं भी उन दिलचस्प और गूढ़ प्लॉट्स को पेश नहीं कर पाई जो खेल की जान थे। कहानी का प्रवाह बेतरतीब है और महत्वपूर्ण ऐक्शन दृश्यों की कमी फिल्म को कमजोर बनाती है।

नए हास्य और एक्शन की कमी

फिल्म में हास्य और ऐक्शन का संयोजन अत्यंत बेमेल है। एक तरफ जहां गेम्स में हास्य का जादू चलता था, वहीं फिल्म का हास्य पुराना और बेजान लगता है। ऐक्शन दृश्य, जो कहानी का हिस्सा होने चाहिए, बेतरतीब और तुरंत भुला देने योग्य हैं। फिल्म के दृश्य अनुमानित और शानदार दृश्यों की कमी में दबते हुए प्रतीत होते हैं।

स्टार कास्ट का उपयोग करने में विफलता

फिल्म की स्टार कास्ट में केट ब्लैंचेट, केविन हार्ट, जैक ब्लैक, जेमी ली कर्टिस और एडगर रामिरेज़ जैसे बड़े सितारे हैं, लेकिन उनकी अदाकारी भी फिल्म को बचा नहीं पाई। हर चरित्र को सही तरह से स्थापित करने के बजाय, फिल्म निराशाजनक रूप से हर किसी का गलत उपयोग करती है। शायद सबसे बड़ी कमी ये है कि दर्शक पात्रों से जुड़ने में असफल रहते हैं।

मानक और रेटिंग का संघर्ष

फिल्म का उत्पादन भी कई समस्याओं से जूझता रहा। जो मुख्य समस्याएँ सामने आईं उनमें प्रमुख है फिल्म का सीमित बजट में बदलाव और अत्यधिक पुन: शूटिंग के दौर। फिल्म को पहले R रेटिंग दी गई थी, लेकिन बाद में PG-13 में बदल दिया गया, जिससे फिल्म के मुख्य तत्व और गहराई में कमी आई। यह बदलाव न सिर्फ कहानी को कमजोर करता है, बल्कि दर्शकों की उम्मीदों को भी तोड़ता है।

संगीत और सिनेमाटोग्राफी

फिल्म का संगीत और सिनेमाटोग्राफी भी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका। गेम्स के मुकाबले, जहां संगीत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, फिल्म का संगीत प्रभाव छोड़ने में असफल रहता है। सिनेमाटोग्राफी भी साधारण से ऊपर नहीं उठ पाती और इन दोनों महत्वपूर्ण पहलुओं की कमी से फिल्म का अनुभव और भी नीचे चला जाता है।

कहानी का अंत

फिल्म के अंत में भी कोई चौंकाने वाला तत्व नहीं है। यह आख्यान अत्यंत सामान्य और पूर्वानुमेय होता है। निर्देशक और निर्माता शायद यह भूल गए कि इस फिल्म से प्रशंसकों की उम्मीदें कितनी ऊंची हैं और उन उम्मीदों को पूरा करने का महत्व क्या है।

अंत में, 'बॉर्डरलैंड्स' फिल्म का अनुकूलन एक ऐसा प्रयास है जो अपने उद्देश्यों में विफल रहता है। जो खेल के प्रशंसकों को संतुष्ट कर सके, वह साहसिकता और मनोरंजन से भरपूर सिनेमेटिक अनुभव प्रदान करने में असमर्थ है। यह एक ऐसा दृष्टांत है जो अनुसरण करने के बजाय छोड़ देने योग्य है।

Savio D'Souza

लेखक के बारे में Savio D'Souza

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।

टिप्पणि (7)
  • Aswathy Nambiar
    Aswathy Nambiar
    9.08.2024

    जैसे कोई बूढ़ा दार्शनिक अपने नशे में उलझा हो, मैं भी इस मूवी को देख कर एक तरह की अस्तित्व की उलझन में पड़ गया।
    बॉर्डरलैंड्स की डिजिटल दुनिया में जहाँ हर कदम पर बायोमैट्रिक ज़िन्दगी का संगीत गूँजता था, यहाँ वही ध्वनि एक थके हुए हार्मोनिक पायल में बदल दी गई।
    फिल्म ने खेल के मूलभूत प्रश्न-पावर, नैतिकता और स्वतंत्रता-को ऐसे ढीले ढंग से फेंका जैसे कोई सैंडविच में सब्ज़ी पड़ गई।
    अगर फिल्म का लक्ष्य केवल बॉक्स ऑफिस की ख़ुशी जुटाना है तो वह सफल रहा, पर अगर गहन सोच की उम्मीद थी तो वो पूरी तरह नीच बस गया।
    केट की लिलिथ अब एक सपनो में ऐसा बकवास पात्र बन गई, जिसका अस्तित्व केवल फैंस को भटके रहने का बहाना बनता है।
    कहानी के मोड़ ऐसे बेतरतीब हैं जैसे तारे रात के आकाश में बिखरे हुए, बिना किसी दिशा के।
    ऐक्शन सीक्वेंस को देख कर ऐसा लगता है जैसे कोई पॉपकॉर्न की थाली में गुरुत्वाकर्षण को मिलाने की कोशिश कर रहा है।
    संगीत तो ऐसा बैंड बजा रहा है जो खुद ही अपने ही बीट को भूल गया हो।
    स्टार कास्ट की चमक तो एक चमकदार मोमबत्ती की तरह है, रोशनी तो देती है पर ठंडक नहीं।
    परफेक्ट रेटिंग बदलने की कहानी भी एक बड़ी साजिश लगती है-जैसे कोई बड़े प्रोडक्शन हाउस अपनी ही छवि को रीसेट कर रहा हो।
    सिनेमैटोग्राफी ने अंतरिक्ष का हार्पी केक खा लिया, और अब बचे हैं सिर्फ बुरे कृत्रिम लाइट्स।
    पूरा प्रोजेक्ट एक बड़े प्रयोगशाला में बनाकर कहा गया था कि यह विज्ञान है, पर असल में यह सिर्फ बड़े पैमाने पर लग्ज़री गफलत है।
    अगर हम इस फिल्म को एक दार्शनिक टेस्टींग के रूप में देखें तो यह बताता है कि हमारी आशाएँ कितनी सच्ची नहीं रही।
    फिर भी, कुछ लोग कहेंगे कि यह सिर्फ व्याकुलता का एक हिस्सा है, पर मैं तो कहूँगा कि यह हमारे मीडिया की सड़न की सच्ची तस्वीर है।
    समाप्ति में कोई आश्चर्य नहीं, बस एक चुप्पी जो कहती है-खेल का दिल यहाँ जाने ही नहीं दिया गया।

  • Ashish Verma
    Ashish Verma
    10.08.2024

    भाइयों और बहनों, इस फिल्म को देख कर हमें हमारी संस्कृति की गहरी समझ की कमी महसूस होती है 😊। खेल में जहाँ भारतीय पौराणिक तत्व झलकते थे, वह यहाँ थोड़ी ही झलक मिली। निर्देशक ने बड़े स्टार्स को उठाने की कोशिश की, पर दिल की गहराई नहीं पहुंची। हमें इस तरह की अनिवार्य रचनात्मकता की जरूरत है, जहाँ हर फ्रेम में हमें अपनी आत्मा मिल सके। आशा है अगले प्रोजेक्ट में ये सब सुधर जाएगा 🙏।

  • Akshay Gore
    Akshay Gore
    11.08.2024

    भाई, मैं तो इस मूवी को खूब सराहता हूँ, बेस्ट रेंडर्शन कह सकते हैं। बॉक्सऑफिस में धूम मचा देगी, यही तो बाय। कहानी का फालतू बेतरतीब होना, एक नया एक्सपिरिमेंट है, देखो तो सही। एक्शन भी ठीक-ठाक है, बहुत जादा नाट्य नहीं, वैसा ही चाहिए था। फैंस को बस एंट्री लेवल पर रखें, और रिलीज़ का प्रॉब्लम नहीं आएगा।

  • Sanjay Kumar
    Sanjay Kumar
    11.08.2024

    चलो, सबका नजरिया अलग है, लेकिन शांति से सबको समझना चाहिए 😊.

  • adarsh pandey
    adarsh pandey
    12.08.2024

    मैं पूरी तरह समझता हूँ कि फिल्म ने कई प्रमुख तत्वों को छोड़ा है, लेकिन यह भी मानना आवश्यक है कि बड़े बजट वाले प्रोजेक्ट कभी‑कभी अपनी सीमाओं से बाहर जाकर पूरक नहीं बन पाते। यदि निर्देशक ने मूल खेल के साथ अधिक निकटता से काम किया होता, तो परिणाम शायद अलग होता। फिर भी, इस प्रयास को सराहते हुए आशा करूँगा कि भविष्य में अधिक संतुलित अनुकूलन देखे जाएंगे। धन्यवाद।

  • swapnil chamoli
    swapnil chamoli
    12.08.2024

    निश्चित रूप से, इस फिल्म के पीछे एक विशाल मैकेनिज्म संचालन हो रहा है, जो केवल वित्तीय लाभ के लिए निडर सच्चाई को धुंधला कर रहा है। हॉलिवुड के एलिट्स ने ऐतिहासिक रूप से खेल की शुद्धता को अपने सांस्कृतिक अधिग्रहण के उपकरण में बदल दिया है, और इस 'बॉर्डरलैंड्स' अनुकूलन में वह वही क्रीडामुक्ति झलकती है। ग्रेडिंग बोर्ड के PG‑13 परिवर्तन को भी एक व्यवस्थित दूमदल अभियान माना जा सकता है, जिससे दर्शकों की अपेक्षाओं को नियंत्रित किया जा सके। इस प्रकार, फिल्म केवल एक व्यावसायिक साधन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्संरचना की एक बड़ी साजिश है।

  • manish prajapati
    manish prajapati
    13.08.2024

    अरे यार, मैं तो कहूँगा कि हर नयी कोशिश में कुछ न कुछ सीखने को मिलता है! 🎉 इस फिल्म ने शायद हम सभी को यह सिखाया कि गेम की कहानियों को बड़े स्क्रीन पर लाने में कितनी कठिनाई होती है, लेकिन यही तो क्रिएटिव प्रोसेस का मज़ा है। भविष्य में जब हम फिर से इस फ्रैंचाइज़ को देखेंगे, तो शायद बेहतर स्क्रिप्ट और अधिक सच्ची एलेमेंट्स साथ होंगी। हम सब को सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि हर असफलता एक नई प्रेरणा की seed देता है। चलो, अगली बार के अनुकूलन का इंतजार करें, उम्मीद है कि वह एक शानदार सिनेमाई यात्रा बन जाए! 🌟

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