
जब मृत्रुंजय मोहापात्रा, डायरेक्टर जनरल इंडिया मेटियोरोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने 24 सितंबर 2025 को घोषणा की, तो दिल्ली ने साउथवेस्ट मॉनसून 2025 के सबसे पहले प्रवेश के बाद अब तक का सबसे जल्दी निरस्त होना देखा। यह निकासी 25 सितंबर को अनुमानित सामान्य निकासी तिथि से ठीक एक दिन पहले हुई, जिससे 2002 के बाद से राजधानी में सबसे जल्दी मॉनसून विदा हुआ।
इसी दिन, इंडिया मेटियोरोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने पुष्टि की कि मॉनसून ने पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, गुजरात, राजस्थान और मध्य भारत के कुछ हिस्सों से भी पीछे हटना शुरू कर दिया है। इस क्रम में साफदरजुंग मौसम स्टेशन ने कुल 902.6 mm वर्षा दर्ज की, जो मौसमीय औसत 640.4 mm से 41 % अधिक है।
इतिहासिक पृष्ठभूमि और मौसमी तुलनाएँ
साउथवेस्ट मॉनसून का दिल्ली में प्रवेश 29 जून 2025 को हुआ था, और इसका कुल समय 88 दिन रहा – 2001 के बाद नौवीं सबसे छोटी अवधि। फिर भी, इस संक्षिप्त अवधि में 63 दिन (लगभग 71 %) बारिश हुई, जो पिछले 24 वर्षों में चौथे सबसे अधिक बारिश वाले दिनों का प्रतिशत है। तुलना के लिये देखें तो 2012 में भी मॉनसून 24 सितंबर को ही निकला था, लेकिन 2024 में निकासी 2 अक्टूबर तक खिंची रही थी।
सबसे अधिक वर्षा वाला वर्ष 2021 में आया, जब राजधानी ने 1176.4 mm रिकॉर्ड किया। इसके विपरीत, 2014 में केवल 307.8 mm ही गिरा, जिससे वह सबसे सूखा मॉनसून बन गया। 2025 की कुल वर्षा का मान 902.6 mm, जबकि पिछले साल 2024 में 1029.9 mm तक पहुंच गया था – दो लगातार चार अंकीय (1000 mm‑plus) वर्षा की उपलब्धि रखी गई।
विस्तृत आँकड़े और मोनसून की विशेषताएँ
- मॉनसून का कुल अवधि: 88 दिन
- बारिश के दिन: 63 (71 % एफ़र्ट)
- सफ़दरजुंग में कुल वर्षा: 902.6 mm (41 % अधिक)
- राष्ट्रीय औसत (जून‑सितम्बर 2025): 937.2 mm (8 % अतिरिक्त, 5वां सबसे उच्च)
- कम प्रेशर सिस्टम के दिनों की संख्या: 69 (नॉर्म 55)
इन्हीं 69 कम‑प्रेशर सिस्टम ने बार-बार बंगाल की खाड़ी से मौसम‑प्रणाली को धक्का दिया, जिससे लगातार बारिश की बौछारें बनी रहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह साल बाय ऑफ बंगाल में उत्पन्न गहराई वाले डिप्रेशन की वजह से हुआ, जो जल्द ही दक्षिण‑पूर्वी और मध्य भारत में हल्की बूंदाबांदी लाने का संभावित था।
सरकारी और विशेषज्ञ प्रतिक्रिया
मॉन्सून के अचानक तेज़ निकास पर अजित सिंह, प्रमुख मौसम विशेषज्ञ वेदर फॉरकास्ट लिमिटेड ने कहा, “अधिक वर्षा के बावजूद मौसमी अवधि का छोटा होना हमारे लिए आश्चर्यजनक है, परन्तु यह दिखाता है कि इंटेंसिटी और अवधि के बीच कोई सीधा रिश्ता नहीं होता।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि किसान‑समुदाय को अस्थाई रूप से बाढ़‑प्रभावित क्षेत्रों में सतर्क रहना चाहिए, खासकर जब डिप्रेशन सेटिलाइट इमेजरी में पुष्टि हो गया है।
इसी बीच, दिल्ली सरकार ने जल‑संकट‑रोकथाम के लिये सुरक्षा योजना 2025‑26 को पुनः ताज़ा किया, जिसमें जल‑भंडारण टैंक की क्षमता को 15 % बढ़ाने का प्रावधान है। साथ ही, उत्तर‑पश्चिमी क्षेत्र में जल‑आपूर्ति की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिये अतिरिक्त टैंकर्स को तैनात किया गया है।
प्रभाव एवं भविष्य की संभावनाएँ
कुल मिलाकर, 2025 का मॉनसून दिल्ली के लिए "उत्पादक लेकिन समय पर" कहा जा सकता है। वर्षा की मात्रा ने जल‑भंडारण में मदद की, लेकिन तेज़ निकासी ने कुछ क्षेत्रों में अचानक मृदा‑विस्थापन को प्रेरित किया। शहर के तापमान में धूप‑से‑बाद बदलते हुए, अगले दो हफ्तों में दिन के समय में धीरे‑धीरे वृद्धि होगी, जबकि शामें ठंडी रहने की संभावना है।
देश‑व्यापी स्तर पर, मॉनसून के अंत का संकेत नॉर्थ‑वेस्ट भारत में आया है, लेकिन बाय ऑफ बंगाल में नई डिप्रेशन के कारण मध्य, पश्चिम और पूर्वी भारत में नयी बरसात की संभावना बनी हुई है। मौसम विज्ञानियों ने कहा कि इस वर्ष के मॉनसून पैटर्न के आधार पर, अगले साल के जल‑संकट‑प्रबंधन योजनाओं में अधिक लचीलापन अपनाना होगा।
आगामी बटन (आरम्भ) और निष्कर्ष
जैसे ही दिल्ली पोस्ट‑मॉन्सून मोड में कदम रखेगा, परिवहन, कृषि और ऊर्जा क्षेत्र को नई सामान्य स्थितियों के अनुसार अनुकूलित करना पड़ेगा। इस बीच, नागरिकों को सलाह दी गई है कि वे अलर्ट में नज़र रखें, क्योंकि बाय‑ऑफ़‑बंगाल डिप्रेशन दो‑तीन दिनों में फिर से सक्रिय हो सकता है और हल्की बूंदाबांदी के साथ तापमान में थोड़ी गिरावट ला सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
साउथवेस्ट मॉनसून 2025 के सबसे जल्दी निकासी का किसान पर क्या असर पड़ेगा?
किसानों को फ़सल के बोऐ जाने के समय पर पुनः‑समायोजन करना पड़ेगा। क्योंकि बारिश जल्दी बंद हुई, धान जैसी जल‑आधारित फसलें कटौती के जोखिम में हैं, जबकि हल्की‑मिट्टी की फसलें जल्दी फसल‑कटाई से लाभ उठा सकती हैं। राज्य कृषि विभाग ने अतिरिक्त सिंचाई सुविधा देने की योजना बनाई है।
दिल्ली में 41 % अतिरिक्त वर्षा से जल‑स्रोतों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उच्च जल‑स्तर ने कई तालाबों और नहरों की क्षम्ता बढ़ा दी है, जिससे जल‑कमी के मौसम में आपूर्ति में स्थिरता आएगी। हालांकि, तेज़ प्रवाह के कारण कुछ क्षेत्रों में जल‑भवन को क्षति का जोखिम भी बढ़ा है; नगरपालिका ने निकासी‑नियंत्रण के उपाय तेज़ कर दिए हैं।
बाय‑ऑफ़‑बंगाल में नई डिप्रेशन का भारत‑व्यापी मौसम पर क्या असर रहेगा?
डिप्रेशन से मध्य और पूर्वी भारत में हल्की‑बारिश की संभावना बढ़ेगी, जिससे मानसून‑समापन के बाद भी नमी का स्तर बना रहेगा। यह पूरक बरसात उत्तर‑पश्चिमी भाग में तापमान को थोड़ा घटा सकती है, और कुछ क्षेत्रों में फसल‑फसल‑रोटेशन को पुनः‑संतुलित करने में मदद करेगी।
क्या 2025 की मॉनसून अवधि के छोटे होने का संबंध ग्लोबल वार्मिंग से है?
वेदर विशेषज्ञ कहते हैं कि अवधि की कमी केवल जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष संकेत नहीं है; बल्कि यह तनावपूर्ण सर्कुलेशन पैटर्न, समुद्री तापमान में असामान्य उतार‑चढ़ाव और लक्षणीय कम‑प्रेशर सिस्टम के उच्च संख्याबद्धता का परिणाम है। दीर्घकालिक अध्ययन में यह स्पष्ट हो रहा है कि भविष्य में मॉनसून की तीव्रता बढ़ेगी जबकि अवधि घट सकती है।
Trupti Jain
30.09.2025दिल्ली की इस साल की मॉनसून रिपोर्ट एक बहुत ही दिलचस्प डेटा सेट पेश करती है। 88 दिन की अवधि में 63 बारिश वाले दिन होना, आँकड़ों की दहलीज को थोड़ा ऊपर ले जाता है। 41 % अतिरिक्त वर्षा के साथ, जलभार में सुधार की संभावनाएँ स्पष्ट दिखती हैं। परंतु, इतना जल्दी निकासी होते हुए भी, यह कृषि‑क्षेत्र को आश्चर्यचकित किया है; फसल‑समय पर समायोजन अनिवार्य हो गया है। सरकार की जल‑संकट‑रोकथाम योजना में टैंक क्षमता बढ़ाना सराहनीय है, पर यह केवल एक भागीदार कदम है। अंततः, मॉनसून की तीव्रता और अवधि के बीच का असंबंध हमारे मौसमी मॉडल को पुनः‑विचार करने पर मजबूर करता है।