भारत के एक छोटे से गाँव में ₹5,000 करोड़ से ज्यादा की बैंक जमा राशि है — और ये कोई शहर नहीं, बल्कि मधापार है, गुजरात के कच्छ जिले का एक ग्रामीण इलाका। यहाँ हर घर के पास औसतन ₹15-20 लाख की बचत है, जो दिल्ली, मुंबई और बैंगलोर जैसे महानगरों की औसत संपत्ति को पार कर जाती है। ये आंकड़े 2025 में बिजनेस टुडे, मनीकंट्रोल और टाइम्स ऑफ इंडिया ने अलग-अलग रिपोर्ट्स में पुष्टि की हैं। इसका सबसे बड़ा रहस्य? यहाँ के 65% लोग विदेशों में रहते हैं — और फिर भी, वे अपनी जमीन को अपनी जिंदगी का केंद्र बनाए हुए हैं।
कैसे बना एक गाँव दुनिया का सबसे अमीर ग्रामीण क्षेत्र?
मधापार का इतिहास 12वीं शताब्दी तक जाता है, जब मिस्त्री समुदाय ने यहाँ अपनी कला और निर्माण कौशल के साथ आधार रखा। धीरे-धीरे, पटेल समुदाय भी यहाँ बस गया। लेकिन 1970 के दशक में जब इन लोगों ने ब्रिटेन, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, खाड़ी देशों और अफ्रीका में निर्माण क्षेत्र में काम शुरू किया, तो यहाँ का भाग्य बदल गया। इन एनआरआई लोगों ने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने गाँव के बैंकों में जमा करना शुरू कर दिया — न कि शहरों में जमीन खरीदकर, न ही स्टॉक मार्केट में निवेश करके।
इंवेस्टमेंट बैंकर सार्थक अहूजा ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट में इसे "माँ धरती के प्रति सच्चाई का एक शानदार उदाहरण" बताया। वो कहते हैं, "ये लोग अमेरिका में बिल्डर हैं, कनाडा में सुपरवाइजर, अफ्रीका में कंट्रैक्टर — लेकिन अपने बच्चों को बताते हैं, तुम्हारी जड़ें मधापार में हैं।" और इसी जड़ों के कारण, आज यहाँ 17 बैंक शाखाएँ हैं, जिनमें केवल व्यक्तिगत और पारिवारिक बचत खातों से ही ₹5,000 करोड़ जमा हैं। कोई कॉर्पोरेट खाते नहीं, कोई बिजनेस लोन नहीं — सिर्फ घरों की बचत।
गाँव में शहर की सुविधाएँ, लेकिन कोई शहरी भावना नहीं
मधापार गाँव लगता है जैसे कोई छोटा शहर। यहाँ स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, पार्क, झीलें, बावड़ियाँ, आधुनिक गौशालाएँ और बिल्कुल सीधी सड़कें हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने 5 दिसंबर, 2025 को एक फोटो एल्बम शेयर किया, जिसमें गाँव के बच्चे बिना धूल के खेल रहे थे, महिलाएँ लाइब्रेरी में किताबें पढ़ रही थीं, और बुजुर्ग बैंक के बाहर बैठकर ब्याज की राशि चेक कर रहे थे।
क्या ये सब राज्य सरकार की योजना का हिस्सा है? नहीं। ये सब एनआरआई लोगों की जेब से निकला हुआ पैसा है। जब एक घर अमेरिका में एक बिल्डिंग बनाता है, तो उसका एक हिस्सा मधापार में एक स्कूल के बिजली के बिल के लिए जाता है। जब एक बहन कनाडा में एक अस्पताल में नर्स बनती है, तो उसका एक हिस्सा यहाँ के गाँव के लिए एक नई आयुर्वेदिक क्लिनिक बनाता है।
क्यों ये मॉडल भारत के लिए एक नया रास्ता है?
भारत में आमतौर पर एनआरआई धन का इस्तेमाल शहरों में रियल एस्टेट खरीदने, कार खरीदने या शादियों में खर्च करने के लिए होता है। लेकिन मधापार का मॉडल अलग है। यहाँ पैसा सीधे समुदाय में वापस जाता है — शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और बचत में।
बिजनेस टुडे के अनुसार, ये एक "डायस्पोरा-ड्रिवन डेवलपमेंट" का शानदार अध्ययन है। गुजराती समुदाय भारत का सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है — लेकिन ये निवेश सरकारी योजनाओं में नहीं, बल्कि घरों में होता है। और ये बदलाव बहुत गहरा है। यहाँ के लोग अपनी पहचान को गाँव के साथ जोड़े रखते हैं — चाहे वो लंदन में रह रहे हों या डबई में।
क्या ये मॉडल दूसरे गाँवों में भी काम करेगा?
अभी तक, ऐसा कोई और गाँव नहीं दिखा है जिसकी बैंक जमा राशि मधापार के बराबर हो। लेकिन कई गुजराती गाँव जैसे भावनगर, अमरेली और बारोड़ा के आसपास इसी तरह की रुझान देखी जा रही है। लेकिन मधापार की असली ताकत ये है कि यहाँ के लोग न केवल पैसा भेजते हैं, बल्कि उसे बुद्धिमानी से लगाते हैं।
एक बैंक अधिकारी ने हमें बताया, "हमारे ग्राहक अक्सर बताते हैं — हम यहाँ निवेश नहीं कर रहे, हम अपने बच्चों के भविष्य की नींव रख रहे हैं।" ये बात बहुत बड़ी है। ये कोई अस्थायी फेसबुक ट्रेंड नहीं है। ये 50 साल का इतिहास है।
अगला कदम क्या होगा?
मधापार के लोग अब अपनी बचत को डिजिटल बैंकिंग और स्थानीय उद्यमों में निवेश करने की ओर बढ़ रहे हैं। एक नया स्टार्टअप, जिसे एक एनआरआई ने शुरू किया है, गाँव के बच्चों के लिए ऑनलाइन ट्यूशन प्लेटफॉर्म चला रहा है। एक अन्य योजना में गाँव के युवाओं को अमेरिका में निर्माण क्षेत्र में नौकरी के लिए तैयार किया जा रहा है — ताकि नयी पीढ़ी भी इस चक्र को जारी रख सके।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
मधापार के लोग विदेश में क्या काम करते हैं?
मधापार के एनआरआई लगभग 65% लोग निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं — बिल्डर, सुपरवाइजर, कंट्रैक्टर या इंजीनियर के रूप में। ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका में वे इस क्षेत्र में बहुत मान्यता प्राप्त हैं। ये नौकरियाँ अच्छी आय देती हैं, और इसी आय को वे अपने गाँव में बचत के रूप में जमा करते हैं।
₹5,000 करोड़ की राशि कहाँ से आई है?
ये राशि केवल व्यक्तिगत और पारिवारिक बचत खातों से आई है — कोई कॉर्पोरेट खाता, बिजनेस लोन या शेयर निवेश शामिल नहीं है। बैंक अधिकारियों के अनुसार, हर घर की औसत बचत ₹15-20 लाख है, जो कुल 7,600 घरों से जुड़ी है। ये राशि 40 से 50 साल के लगातार रेमिटेंस का परिणाम है।
क्या मधापार का मॉडल दूसरे गाँवों में भी दोहराया जा सकता है?
हाँ, लेकिन इसके लिए दो चीजें जरूरी हैं: एक तो एक बड़ी डायस्पोरा जो नियमित रेमिटेंस भेजे, और दूसरा एक मजबूत सामाजिक बंधन जो घर को केंद्र बनाए रखे। गुजरात के कई गाँव इस राह पर चल रहे हैं, लेकिन मधापार अभी तक सबसे बड़ा और सबसे संगठित उदाहरण है।
क्या इस धन का उपयोग स्थानीय उद्यमों में हो रहा है?
हाँ, और ये बदलाव तेजी से हो रहा है। एनआरआई लोग अब गाँव में छोटे उद्यमों, डिजिटल शिक्षा प्लेटफॉर्म, और स्थानीय व्यवसायों में निवेश कर रहे हैं। एक नया ऑनलाइन ट्यूशन स्टार्टअप भी गाँव के बच्चों के लिए बनाया गया है। ये बदलाव बचत को उत्पादक निवेश में बदल रहा है।
क्या मधापार के लोग अपनी संस्कृति को बनाए रख पाए हैं?
बिल्कुल। यहाँ हर साल दिवाली, गणेश चतुर्थी और नवरात्रि बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। एनआरआई लोग अक्सर अपने बच्चों को गाँव लाते हैं, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें। यहाँ की भाषा, खाने की आदतें और सामाजिक संरचना अभी भी पूरी तरह गुजराती है — भले ही लोग लंदन या डबई में रह रहे हों।
क्या इस धन का उपयोग राज्य सरकार ने किया है?
नहीं। ये सारी विकास गतिविधियाँ स्थानीय समुदाय और एनआरआई लोगों के व्यक्तिगत निर्णयों से हुई हैं। राज्य सरकार ने कोई विशेष योजना नहीं बनाई, न ही फंड दिया। ये एक ग्रामीण आत्मनिर्भरता का अद्भुत उदाहरण है — जहाँ लोग खुद अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।
Kumar Deepak
6.12.2025ये गाँव तो बस एक फेक न्यूज़ आर्टिकल है, भाई। ₹15-20 लाख हर घर के पास? अगर ऐसा होता तो हर गाँव में बैंक शाखाएँ खुल जातीं। ये सब लोग अमेरिका में बिल्डर हैं? तो फिर उनके बच्चे क्यों नहीं अमेरिका में घर बनाते? ये सब बस एक गूगल रिजल्ट का जादू है।
Ganesh Dhenu
8.12.2025मधापार का ये मॉडल असल में बहुत सुंदर है। लेकिन इसकी वजह सिर्फ एनआरआई की बचत नहीं, बल्कि उनकी जड़ों से जुड़े रहने का जज्बा है। हमारी संस्कृति में गाँव का महत्व बहुत बड़ा है। जहाँ लोग अपने बच्चों को गाँव की धरती से जोड़ना चाहते हैं, वहाँ ये बदलाव संभव है।
Yogananda C G
9.12.2025अरे भाई ये तो बहुत बड़ी बात है जो आपने लिखा है और मैं इसे बिल्कुल सही ढंग से समझ रहा हूँ क्योंकि जब एक इंसान अपने बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ता है तो वो बस एक घर नहीं बना रहा होता बल्कि एक विरासत बना रहा होता है और ये विरासत जब बैंक खातों में जमा होती है तो वो बस एक आंकड़ा नहीं बल्कि एक अहसास हो जाता है कि हम अकेले नहीं हैं और ये गाँव जो है वो बस एक जगह नहीं बल्कि एक जीवनशैली है जिसमें हर रुपया एक इच्छा का प्रतीक है और हर बैंक शाखा एक दिल की धड़कन है जो दुनिया के किसी कोने में भी बनी रहती है और ये तो बहुत ही खास बात है जो आज के शहरी जीवन में खो चुकी है।
Divyanshu Kumar
10.12.2025ये गाँव का डेटा बिल्कुल सही है। मैंने खुद गुजरात के एक गाँव में एनआरआई के घर देखे हैं। लेकिन ये बात नहीं कि ये सब अच्छा है। क्या आपने सोचा कि जब इतने पैसे एक जगह जमा हो जाएँ, तो वो अक्सर अलग-अलग लोगों के बीच झगड़े का कारण बन जाते हैं? ये जमा राशि एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
Arjun Kumar
10.12.2025अरे ये सब बकवास है। अगर ये गाँव इतना अमीर है तो फिर इसकी खबर टीवी पर क्यों नहीं आती? और जब आती है तो बस एक फेक आर्टिकल के रूप में? ये सब बस एक ब्रांडिंग ट्रिक है जिसे किसी ने बनाया है ताकि लोग अपने गाँव को भी इस तरह दिखाएँ।
RAJA SONAR
11.12.2025मधापार? ये तो बस एक गाँव है जिसमें कुछ लोग अमेरिका में काम करते हैं। इसे एक नया मॉडल बताना बहुत बड़ी बकवास है। मैंने तो देखा है कि जहाँ भी गुजराती लोग जाते हैं, वहाँ वो अपने घर की जगह बेचकर शहर में जाते हैं। ये सब बस एक बहाना है जिसे किसी ने बनाया है ताकि लोगों को लगे कि गाँव अभी भी जिंदा है।
Mukesh Kumar
12.12.2025ये बात तो बहुत अच्छी है! इस तरह के गाँव भारत के लिए एक आशा की किरण हैं। हमें ऐसे उदाहरणों को बढ़ावा देना चाहिए। अगर हर गाँव इस तरह से अपनी बचत को समुदाय में लगाए तो भारत का ग्रामीण विकास अच्छा हो जाएगा। मैं इसके लिए अपना भी कुछ योगदान दूँगा।
Shraddhaa Dwivedi
12.12.2025मुझे ये बात बहुत पसंद आई कि यहाँ महिलाएँ लाइब्रेरी में किताबें पढ़ रही हैं। ये बदलाव बहुत बड़ा है। अगर एक गाँव में लड़कियाँ पढ़ रही हैं और बुजुर्ग बैंक के बाहर बैठकर ब्याज चेक कर रहे हैं, तो ये सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि सम्मान का निशान है।
Govind Vishwakarma
13.12.2025₹5,000 करोड़? तो फिर ये गाँव बैंक ऑफ इंडिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा बैंक क्यों नहीं है? और अगर ये सब व्यक्तिगत बचत है तो फिर ये राशि किसके नाम पर है? क्या ये डेटा ऑडिट किया गया है? ये सब बस एक फेक न्यूज़ है जिसे किसी ने बनाया है ताकि लोगों को भ्रमित किया जा सके।
Jamal Baksh
13.12.2025यहाँ की बात बहुत गहरी है। ये गाँव न केवल धन का केंद्र है, बल्कि संस्कृति, परिवार और जिम्मेदारी का भी। ये एक ऐसा उदाहरण है जो दुनिया को दिखाता है कि विकास का अर्थ सिर्फ शहरीकरण नहीं होता। ये एक नए तरीके से जीने का नमूना है - जहाँ लोग अपनी जड़ों को बरकरार रखते हुए भी दुनिया के साथ जुड़े रहते हैं।