
जब सिक्के पर रानी का नाम उभरा: मुगल हरम की पढ़ी-लिखी दुनिया
भारतीय मध्यकाल में जहां सत्ता ज्यादातर बादशाहों के हाथ में दिखती है, वहीं मुगल दरबार की पढ़ी-लिखी मुगल रानियां सत्ता, ज्ञान और सलीके की बराबर भागीदार रहीं। सोचिए, जहांगीर के दौर में ऐसे सिक्के ढलते हैं जिन पर ‘नूरजहाँ बादशाह बेगम’ का नाम लिखा है—यह सिर्फ शक्ति नहीं, शिक्षा और प्रशासनिक समझ का सार्वजनिक स्वीकार था।
इस कहानी की जड़ें तैमूरी विरासत में दिखती हैं। बाबर की दादी ऐसान दौलत बेगम, मां कुतलुग निगार खानम और बहन खानज़ादा बेगम पढ़ी-लिखी और राजनीतिक तौर पर पैनी समझ रखने वाली शख्सियतें थीं। इन्हीं घरों में लड़कियों को तुर्की (चगताई), फ़ारसी और अरबी सिखाई जाती थी, कुरान और तफ़सीर से लेकर इतिहास, शायरी, सुलेख, गणित और प्रशासनिक व्यवहार तक की तालीम दी जाती थी। शाही किताबख़ाने, क़लमदान और काग़ज़ की खुसबू—यह सब औरतों की शिक्षा का भी हिस्सा था।
मुगल दरबार में शाही महिलाओं के लिए निजी उस्ताद और उस्तानियाँ नियुक्त होतीं। हरम में सुबह-शाम की पढ़ाई तय समय पर चलती—भाषाएँ, साहित्य, हुकूमत का तौर-तरीका, और दस्तावेज़ लिखने-पढ़ने की कला। शहरों में मकतब-मदरसे और सरायों के नेटवर्क ने भी पढ़ाई के लिए माहौल बनाया, जिससे विद्वानों, कवियों और कलाकारों की आवाजाही बढ़ी और दरबार में ज्ञान का साझा बढ़ा।
नूर जहाँ, गुलबदन, जहानारा और ज़ेब-उन-निस्सा: किताब, कलम और कूटनीति
मेहरुन्निस्सा—जिसे दुनिया नूरजहाँ के नाम से जानती है—मुगल दौर की सबसे तेज-तर्रार और पढ़ी-लिखी रानियों में शुमार है। फ़ारसी, अरबी और उर्दू में दक्ष; शायरी, कूटनीति और प्रशासन में माहिर। जहांगीर के शासन में उनके फ़रमान जारी हुए, मुहरें लगीं और बहुत-सी सरकारी नियुक्तियाँ उनकी सलाह से तय हुईं। 1626 में महावत ख़ान की बगावत के वक्त नूरजहाँ ने हालात संभाले—रणनीति बनाई, बातचीत की और बाद में जहांगीर की रिहाई की राह निकाली।
कला और वास्तु में उनका असर ठोस है। आगरा में उनके पिता मिर्ज़ा ग़ियास बेग (एतमादुद्दौला) का संगमरमर का मक़बरा उन्होंने बनवाया, जहां पिएत्रा-दूरा जड़ाई और नाजुक संगतराशी ने शाहजहाँ के ताजमहल तक की राह दिखा दी। वे शायरी लिखतीं, कपड़ों के डिज़ाइन और इत्र-सुगंध तक में नए चलन लातीं, और दरबार में कलाकारों को संरक्षण देतीं।
- सत्ता में भागीदारी: जहांगीर के साथ सह-शासन की व्यावहारिक भूमिका, सिक्कों पर नाम, फ़रमान जारी।
- वास्तु-संरक्षण: एतमादुद्दौला का मक़बरा—संगमरमर और जड़ाई की नई भाषा।
- संस्कृति: शायरी, फैशन और सुलेख को दरबारी सौंदर्य का हिस्सा बनाना।
अब चलें गुलबदन बेगम की तरफ़—बाबर की बेटी, अकबर की बुआ—जिन्होंने हुमायूँनामा लिखकर शुरुआती मुगल काल का दुर्लभ ‘इंसाइड व्यू’ दिया। फ़ारसी में लिखा यह ग्रंथ राजनैतिक उलटफेर, खानदानी रिश्तों, यात्राओं और हरम की दिनचर्या तक का सजीव ब्यौरा देता है। 1570 के दशक में उनके हज़ सफ़र की दास्तान भी इतिहास में दर्ज है, जिससे उस दौर की सामाजिक-धार्मिक आवाजाही समझ आती है। उनका लिखना सिर्फ साहित्य नहीं, इतिहास के गायब पन्नों का दस्तावेज़ है।
जहानारा बेगम—शाहजहाँ की सबसे बड़ी बेटी—सूफ़ी परंपरा, साहित्य और शहरी वास्तु की समझ के लिए जानी जाती हैं। वे कादिरिया-सूफ़ी सिलसिले से जुड़ीं, ‘मुनिस-उल-अरवाह’ और ‘रिसाला-ए-साहिबिया’ जैसे ग्रंथ लिखे और सूफ़ी संतों की जीवनी व तज़किरों को लोकप्रिय बनाया। दिल्ली में शाहजहानाबाद की रौनक—चांदनी चौक का बाग़-बाज़ार, सरायें, हमाम—उनकी निगरानी में निखरे। वे बड़े-जागीरों का प्रबंधन देखतीं, व्यापार की समझ रखतीं और बादशाह की बीमारी के दौर में दरबार की राजनीति में मध्यस्थता करतीं।
- सूफ़ी विद्या: साहित्यिक और आध्यात्मिक लेखन, सूफ़ी नेटवर्क से संवाद।
- शहरी परियोजनाएँ: चांदनी चौक की योजना, कारवाँसराय और बाग़-बगीचे।
- राजनीतिक भूमिका: जागीर और राजस्व प्रबंधन, वारिसी संघर्षों में सुलह-सफाई की कोशिशें।
औऱ फिर आती हैं ज़ेब-उन-निस्सा—औरंगज़ेब की सबसे बड़ी बेटी—जो ‘मख़्फ़ी’ तखल्लुस से शायरी लिखती थीं। फ़ारसी-उर्दू की बारीकियों पर उनकी पकड़, इस्लामी अध्ययन और दार्शनिक बहसों में उनकी भागीदारी ने उन्हें दरबारी हलकों का बौद्धिक केंद्र बना दिया। उनके इर्द-गिर्द मुशायरों और अदीबी महफ़िलों का जमाव रहता। बाद के सालों में राजनीतिक वजहों से उन्हें लंबे समय तक नज़रबंद रहना पड़ा, लेकिन उनकी शायरी और दीवान की प्रतिष्ठा बनी रही—भीतर का संघर्ष और ज्ञान का आत्मविश्वास, दोनों साथ।
महरानी मरियम-उज़-ज़मानी—जिन्हें आम बोलचाल में गलत तौर पर ‘जोधाबाई’ कहा जाता है—अकबर की रानी और जहांगीर की मां थीं। उनकी पहचान शिक्षा के साथ व्यावहारिक बुद्धि में भी दिखती है: समुद्री व्यापार में हिस्सेदारी, ‘रहीमी’ नाम का जहाज़, और लाहौर में बेगमशाही मस्जिद का निर्माण—यह सब बताता है कि शाही औरतों की शक्ति महल की दीवारों से बहुत बाहर तक फैली थी। राजपूताना और फ़ारसी दरबार की भाषाओं के बीच पुल बनने का काम उन्होंने किया और कूटनीति में अक्सर परदे के पीछे रहकर असर डाला।
इन प्रमुख चेहरों के अलावा, हमीदा बानो बेगम (अकबर की मां) और खानज़ादा बेगम जैसी महिलाओं की शिक्षा और सूझबूझ ने मुगल खानदान को संकट के दौर में संभाला। यह भी दर्ज है कि शाही महिलाओं के पास अपनी मुहर, दस्तावेज़ों पर अधिकार और जागीरों व औक़ाफ़ का प्रबंधन था—यानी पढ़ाई महज शौक नहीं, शासन की भाषा थी।
अब सवाल उठता है—यह शिक्षा मिलती कैसे थी? हरम में निर्धारित पाठ्यक्रम चलता: सुबह की तिलावत, दिन में भाषा और साहित्य, शाम को संगीत-सुलेख या शास्त्रार्थ। उस्ताद-उस्तानियाँ फ़ारसी लेखन, पत्रचार, हिसाब-किताब, और राजकीय शिष्टाचार सिखाते। दरबार के किताबख़ाने में नकल-नवीसी (मैन्युस्क्रिप्ट कॉपी), जलील-ओ-ख़त्ताती (कैलीग्राफी) और इल्म-ए-हयात (खगोल) जैसी विधाएँ भी सीखाई जातीं। कई रानियाँ अपने खर्च से मसविदा-नवीस और मुनशी रखतीं, जो फ़रमान और अर्ज़-दारख्वास्त तैयार करते।
कला-संरक्षण इसकी स्वाभाविक परिणति थी। नूरजहाँ का एतमादुद्दौला से लेकर जहानारा की शहरी परिकल्पनाएँ और मरियम-उज़-ज़मानी की मस्जिद—ये सब शिक्षा से निकली हुई सौंदर्य-दृष्टि के प्रशासनिक रूप हैं। साहित्यिक परंपरा में गुलबदन का हुमायूँनामा और ज़ेब-उन-निस्सा का दीवान दो ध्रुव हैं—एक ओर इतिहास का सहज और घरेलू कथ्य, दूसरी ओर सूक्ष्म आत्मकथ्य और दर्शन की रवानी।
मुगल शासन में स्त्री-शिक्षा का औपचारिक ढांचा भी दिखता है। अकबर के समय में शहरों में मकतबों की तादाद बढ़ी, और दरबार ने विद्वानों को जागीरें व अनुदान दिए। शाही हरम में लड़कियों के लिए अलग से कक्षाएँ, धार्मिक व लौकिक दोनों तरह की पढ़ाई, और प्रतिभा के मुताबिक उच्च अध्ययन का रास्ता खुला रहता। नतीजा—रानियाँ महज़ प्रतीक नहीं रहीं; वे संपत्ति का हिसाब रखतीं, राजस्व देखतीं, कूटनीति में सलाह देतीं और कला-संस्कृति को मुकाम देतीं।
इतिहास के पन्नों में इन रानियों के नाम सिर्फ रिश्तों के संदर्भ में नहीं, विचार और काम के असर से दर्ज हैं। उनकी शिक्षा ने उन्हें आवाज़ दी—फ़ारसी दीवान से लेकर शाही फ़रमान तक—and वही आवाज़ आज भी सुनाई देती है जब हम महिलाओं की पढ़ाई, आर्थिक भागीदारी और सांस्कृतिक नेतृत्व की बात करते हैं। उनकी विरासत बताती है: किताब और कलम, सत्ता के सबसे भरोसेमंद औज़ार हैं।