शराब का सेवन — क्या जानना जरूरी है?

क्या आप सोचते हैं सिर्फ पार्टी पर एक-दो गिलास से कोई फर्क नहीं पड़ता? सच्चाई थोड़ी और जटिल है। शराब तुरंत मूड बदल देती है, पर उसका असर शरीर, दिमाग और रिश्तों पर कई तरह से दिखता है। यहां सीधे, व्यावहारिक तरीके से बताऊंगा कि किस तरह के जोखिम हैं, कब सावधान रहना चाहिए और अगर जरूरत हो तो मदद कहाँ मिलेगी।

शराब के स्वास्थ्य पर असर

शराब छोटी मात्रा में अस्थायी आनंद दे सकती है, लेकिन ज्यादा या बार-बार लेने पर यह लीवर (यकृत), दिल, पाचन और दिमाग को खराब कर देती है। लम्बे समय तक सेवन से लीवर सिरोसिस, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और कुछ कैंसर का खतरा बढ़ता है। नींद और ध्यान पर भी असर होता है — काम में प्रदर्शन घट सकता है।

एक और छोटा लेकिन अहम तथ्य: शराब डिहाइड्रेशन और ऊर्जा गिरावट देती है। अगले दिन थकान और सिरदर्द आम हैं। खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए कोई सुरक्षित मात्रा नहीं मानी जाती — भ्रूण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।

कानून और सुरक्षा — क्या ध्यान रखें?

भारत में शराब की आयु सीमा राज्य-वार अलग है (आमतौर पर 18-25 वर्ष के बीच)। कुछ राज्यों में पूरी पाबंदी भी है (जैसे गुजरात और बिहार)। शराब पीकर गाड़ी चलाना गंभीर अपराध है — पुलिस जांच और जुर्माना/सजा हो सकती है। सुरक्षित रहना है तो ड्राइविंग से पहले न लें या कहीं कोई ड्राइवर रखें।

रक्त में शराब की मात्रा (BAC) बढ़ने पर संतुलन, निर्णय और प्रतिक्रिया धीमी पड़ती है। काम पर, मशीन चलाते वक्त या गर्भावस्था में बिल्कुल न पीएं।

शराब की लत के संकेत पहचानें: रोज़ पीने की आदत, मात्रा बढ़ती जाना, रोकने पर बेचैनी, काम/रिश्तों में गिरावट। अगर आप या किसी जानने वाले में ये लक्षण दिखें तो समय पर कदम उठाना ज़रूरी है।

शराब कम करने या छोड़ने के व्यावहारिक तरीके

1) सीमा तय करें: पहले तय कर लें कि एक हफ्ते में कितनी बार और कितनी मात्रा लेनी है। 2) ट्रिगर पहचानें: किस हालात में अधिक पीते हैं — दोस्तों के साथ, अकेले तनाव में — उसे बदलने की कोशिश करें। 3) वैकल्पिक गतिविधि: पानी, नॉन-अल्कोहल ड्रिंक या छोटी सैर लें। 4) समर्थन लें: परिवार या दोस्त को बताइए या किसी सपोर्ट ग्रुप/डिहैब सेंटर से जुड़ें।

कभी-कभार अचानक बंद करने से शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं, खासकर लंबे समय से भारी सेवन कर रहे लोगों में। ऐसी स्थिति में डॉक्टर या नशामुक्ति केंद्र की मदद लें — मनोवैज्ञानिक और मेडिकल सपोर्ट जरूरी होता है।

मदद कहाँ मिलेगी? सरकारी नशा-मुक्ति केंद्र (Nasha Mukti Kendra), निजी क्लीनिक्स और Alcoholics Anonymous जैसी सपोर्ट ग्रुप्स उपलब्ध हैं। अपने नजदीकी अस्पताल या मेडिकल हेल्पलाइन से भी दिशा-निर्देश लें।

अंत में, सवाल करें: क्या यह आदत मेरे स्वास्थ्य, परिवार या काम को प्रभावित कर रही है? छोटे कदम — सीमित मात्रा, ड्राइव न करना, और मदद माँगना — बहुत फर्क डाल सकते हैं। अगर जरूरत लगे तो देर न करें, प्रोफेशनल सहारा लें और धीरे-धीरे सुरक्षित जीवन की तरफ बढ़ें।

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