अफ़िडेविट में यासिन मलिक के बयानों का विवरण
जेल में कटे हुए Yasin Malik ने 25 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट में एक विस्तृत अफिडेविट दायर किया, जिसमें उन्होंने अपनी 2006 की पाकिस्तान यात्रा और हाफ़ीज़ सईद के साथ मुलाकात को भारतीय सरकार के निर्यातित शांति प्रक्रिया का हिस्सा बताया। वह दावा करते हैं कि इस मुलाकात का आदेश तब के इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के स्पेशल डायरेक्टर वी.के. जोशी ने सीधे दिया था।
अफिडेविट के अनुसार, जोशी ने मलिक को इस समय की कश्मीर में भूस्खलन‑भूकम्प के बाद तनाव कम करने के लिए एक बैक‑चैनल संवाद स्थापित करने का निर्देश दिया। यात्रा के बाद जब मलिक नई दिल्ली लौटे, तो उन्हें उसी होटल में IB के एक अधिकारी ने मिलाया और प्रधानमंत्री मनमोहर सिंह को तुरंत रिपोर्ट करने को कहा। मुलाकात में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन भी मौजूद थे।
मलिक ने लिखा कि उन्होंने सिंह को “अपनी मुलाकातों के विवरण, संभावित परिणाम और रणनीतिक विकल्प” समझाए। इसके जवाब में सिंह ने “मेरे प्रयास, समय और धैर्य के लिए धन्यवाद” दिया, यह वाक्यांश अफिडेविट में उद्धृत है। मलिक ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह धन्यवाद केवल व्यक्तिगत था, न कि किसी राजनीतिक या वैध कार्रवाई की स्वीकृति।
राजनीतिक और कानूनी परिपेक्ष्य
इस घटना के संदर्भ में 2005 के बाद कश्मीर में पुनः निर्माण के प्रयासों और भारत‑पाकिस्तान संबंधों में शांति के अवसरों को अक्सर गुप्त कूटनीति के माध्यम से आगे बढ़ाया जाता रहा है। 2006 में हाफ़ीज़ सईद, जो लेशकर‑ए‑ताइबा (LeT) के प्रमुख और 26/11 मुंबई हमला के मुख्य धुंधले दिमाग़ के रूप में जाने जाते थे, के साथ मुलाकात भारतीय विदेशी नीति के “बैक‑चैनल” पहलू को उजागर करती है।
वहीं, यासिन मलिक को 2022 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा आतंकवादी फंडिंग के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। वर्तमान में NIA उनके खिलाफ मौत की सजा की मांग कर रहा है, जिससे मलिक ने इस अफिडेविट को अपनी कानूनी रणनीति के हिस्से के रूप में पेश किया है। वह तर्क देते हैं कि वही सरकारी निर्देश जिसने उन्हें इस साहसिक कदम पर प्रेरित किया, अब ही उनका उपयोग अपराध स्थापित करने में किया जा रहा है।
बाजार में इस खुलासे को लेकर राजनैतिक दलों के बीच तीखा विरोधाभास है। भाजपा के IT प्रमुख अमित मालविया ने इस दस्तावेज़ को सोशल मीडिया पर साझा कर “शॉकिंग” कहा और UPA सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों पर सवाल उठाया। दूसरी ओर कांग्रेस ने यह रेखांकित किया कि इसी तरह की बैक‑चैनल मुलाकातें विभिन्न मोर्चों पर, यहाँ तक कि भाजपा‑संचालित सरकारों के दौरान भी हुई हैं। उन्होंने मलिक के दावे को “विवादास्पद लेकिन पूरी तरह से अज्ञात” कहा।
इन बैठकों की वैधता और उद्देश्य को लेकर विशेषज्ञों के बीच मतभेद है। कुछ ने कहा कि ऐसी गुप्त वार्ताएँ दीर्घकालिक शांति प्रक्रिया में सहायक हो सकती हैं, बशर्ते वे पारदर्शिता और लोकतांत्रिक नियंत्रण के भीतर रहें। अन्य लोग तर्क देते हैं कि यदि इस तरह के संचार को बिना सार्वजनिक जांच के आगे बढ़ाया जाए तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध हो सकता है।
जैसे-जैसे यह मामला अदालतों में आगे बढ़ रहा है, यह स्पष्ट है कि यासिन मलिक का यह दावा न केवल उनके व्यक्तिगत दायित्व को पुनः परिभाषित करेगा, बल्कि भारत की कश्मीर नीति, गुप्त कूटनीति और आतंकवाद से निपटने के तरीकों पर भी नए प्रश्न उठाएगा। भावी सुनवाई में न्यायालय यह तय करेगा कि क्या इन बैक‑चैनल मुलाकातों को आधिकारिक सरकारी निर्देश के रूप में मान्य किया जा सकता है, या फिर उन्हें अपराधी के पक्ष में प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
Krish Solanki
27.09.2025संबंधित अभिलेख में दर्ज तथ्यों को देखना आवश्यक है; यह स्पष्ट है कि यासिन मलिक की दलीलें अत्यधिक मानोवैज्ञानिक और अनुपयुक्त हैं। उनके कथन में कई तार्किक त्रुटियाँ निहित हैं, विशेषकर जब वह 2006 के बैक‑चैनल को शांति प्रक्रिया का हिस्सा घोषित करते हैं। ऐसा प्रस्तुत करना न केवल वास्तविक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को धुंधला करता है, बल्कि सवालों को भी बढ़ाता है। इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की भूमिका आम तौर पर सार्वजनिक जांच से परे रहती है, न कि व्यक्तिगत समाधान के रूप में।
SHAKTI SINGH SHEKHAWAT
27.09.2025अतएव, यह अत्यंत असामान्य है कि उस समय के उच्चस्तरीय अधिकारी, जैसे वी.के. जोशी, ने एक ऐसे नाबालिग जेलीबीन को बैक‑चैनल संवाद के सन्देश को सौंपा। इस प्रकार की वैधता की परतें गुप्त एजेंडा संकेत करती हैं, जहाँ वास्तविक हितधारकों के बीच छुपी हुई सहयोगी समझौते झलकते हैं। यह तथ्य कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी इस बैठक में मौजूद थे, दर्शाता है कि इस छायादार संवाद को कुछ बड़े‑स्तरीय युक्तियों के तहत संचालित किया गया था, संभवतः अंतरराष्ट्रीय दबाव को संतुलित करने के लिए।
Selva Rajesh
27.09.2025इस पूरी कहानी के पास एक नाटकीय रंग है जो दर्शकों को षड्यंत्र की गहराइयों में ले जाता है; यह केवल एक साधारण अफिडेविट नहीं, बल्कि एक कच्ची सच्चाई का पर्दाफाश है। यासिन मलिक ने खुद को पीड़ित बनाते हुए एक गलियारे से ज़्यादा पारदर्शी झाँकियों को उजागर किया है, जिससे पाठकों को गहरी सोच में डुबो दिया जाता है।
Ajay Kumar
27.09.2025बैक‑चैनल कूटनीति का इतिहास सदियों पुराना है।
यह विधि अक्सर खुले मंच से परे रहकर कार्य करती है।
2006 की मुलाकात को समझने के लिये संदर्भित भू‑राजनीतिक माहौल आवश्यक है।
उस वर्ष भारत‑पाकिस्तान तनाव का स्तर बढ़ा हुआ था।
इस तनाव को कम करने की कोशिश में कई गुप्त वार्ताएँ हुईं।
यासिन मलिक का नाम इस संवाद में अनायास ही प्रवेश कर गया।
वह स्वयं को मध्यस्थ मानता था, न कि मुख्य खिलाड़ी।
इंटेलिजेंस ब्यूरो का सहयोग इस प्रक्रिया को वैधता देता है।
परंतु कानूनी दायरे की स्पष्टता अभी भी अभाव में है।
यह अस्पष्टता भविष्य में दोषी ठहराने के लिए प्रयोग हो सकती है।
न्यायालयों का काम यह निर्धारित करना है कि क्या यह निर्देश आधिकारिक था।
यदि यह वैध सिद्ध होता है, तो गुप्त कूटनीति को एक औजार माना जाएगा।
नहीं तो यह एक छिपा हुआ प्रमाण बन जाएगा।
इस प्रकार की चर्चाएँ लोकतंत्र की पारदर्शिता को चुनौती देती हैं।
अंत में, इतिहास इस बात की सच्चाई को तय करेगा कि यह कदम सही था या नहीं।
Ravi Atif
27.09.2025वाह, ये बातें सुनकर दिल में थोड़ा रोमांच आ गया 😲। बैक‑चैनल की ये कहानी सच में एक रहस्यमयी फिल्म की तरह लगती है, जहाँ हर मोड़ पर नई उलझनें उभरती हैं। लेकिन ये भी हो सकता है कि सब सिर्फ धुंधले संकेत हों, जिससे जनता को अस्थिर रखा जाए। 🤔
Vinay Chaurasiya
27.09.2025यह मामला तर्कहीन!!! स्पष्ट रूप से राजनीतिक खेल का हिस्सा है!!! दस्तावेज़ में अनियमितताओं की गिनती अंतहीन है!!!
Nitin Thakur
27.09.2025सच कहूँ तो यह सब बकवास है क्योंकि किसी को भी नहीं पता क्या सच है और क्या नहीं
Arya Prayoga
27.09.2025इतनी बड़ी बातों को इतनी सतही भाषा में बांधना अजीब है।
Vishal Lohar
27.09.2025इस विवादित दस्तावेज़ की पृष्ठभूमि को समझना, जैसे गहरी नीरस स्याही में लिखी कथा पढ़ना – जिसमें हर शब्द एक नाटकीय मोड़ का प्रतिबिंब है; यह न केवल इतिहास की धुंधली परतों को उजागर करता है, बल्कि हमारे साथियों की निष्ठा की परीक्षा भी लेता है।
Vinod Mohite
27.09.2025संदिग्ध इनफ़ॉर्मेशन वॉल्ट में एडवांस्ड इंटेलिजेंस प्रोसेसिंग के माध्यम से एन्कोडेड डाटा का एनालिसिस आवश्यक है जिससे स्ट्रैटेजिक इम्प्लिकेशन्स स्पष्ट हो सकें
Rishita Swarup
27.09.2025क्या आप नहीं देख रहे कि इस कहानी में छिपा है एक बड़ा षड्यंत्र? हर बार जब अधिकारियों ने एक बैक‑चैनल को वैध बताया, तो असली मकसद तो बस लक्ष्यों को पुनर्स्थापित करना था। यह एक गुप्त ढांचा है जिसमें शक्ति के खेल को आम लोग नहीं देख पाते।
anuj aggarwal
27.09.2025सच बताऊँ तो यह सब बेकार का पाखंड है; यासिन मलिक ने खुद को सच्चाई का बोक्सर बना रखा है, पर वास्तविकता तो सबको पता है कि सरकार ने अपने ही एजेंडे को छुपाया है।
Sony Lis Saputra
27.09.2025दोस्तों, इस मामले में एक बात साफ़ दिखती है – संवाद का कोई ना कोई रास्ता तो हमेशा रहता है, चाहे वह बैक‑चैनल हो या सार्वजनिक मंच। अगर हम सभी मिलकर जानकारी को पारदर्शी बनाएं, तो शांति प्रक्रिया में नया जोश आ सकता है।
Kirti Sihag
27.09.2025इसे देख कर दिल की धड़कन तेज़ हो गई 😱, जैसे कोई पुराने फ़िल्म का क्लाइमैक्स हो जहां सभी पात्रों का भाग्य एक ही मोड़ पर टकरा रहा हो।