Kalki 2898 AD समीक्षा: तेलुगु सिनेमा इतिहास में एक अनोखी कहानी

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Kalki 2898 AD समीक्षा: तेलुगु सिनेमा इतिहास में एक अनोखी कहानी

क्ल्कि 2898 AD: तेलुगु सिनेमा में एक अनोखी कहानी

तेलुगु फिल्म 'क्ल्कि 2898 AD' एक ऐसा फिल्म है जो तेलुगु सिनेमा के इतिहास में अपने यूनिक स्टोरीलाइन और शानदार प्रस्तुति के लिए जानी जाएगी। इस फिल्म का निर्देशन नाग अश्विन ने किया है, जिन्होंने इससे पहले 'महंती' जैसी सुपरहिट फिल्म दी थी। 'क्ल्कि 2898 AD' में नाग अश्विन ने बिल्कुल नई दिशा में कदम रखते हुए एक ऐसी कहानी पेश की है जिसे दर्शकों ने पहले कभी नहीं देखा।

स्टार-स्टडेड कास्ट

फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता इसकी स्टार-स्टडेड कास्ट है। प्रभास, अमिताभ बच्चन, कमल हासन, दीपिका पादुकोण, और दिशा पाटनी जैसे बड़े नाम इसमें शामिल हैं। ये कलाकार भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के ध्रुव तारे हैं, और उनकी एक्टिंग का जलवा देखने को मिलता है। राजेंद्र प्रसाद, शोभन, शश्वत चटर्जी, ब्रह्मानंदम, पसुपति, अन्ना बेन, और मलविका नायर भी अपने-अपने किरदारों में शानदार अभिनय करते हैं।

तकनीकी उत्कृष्टता

फिल्म की तकनीकी टीम भी कुछ कम नहीं है। सिनेमैटोग्राफी के लिए जिम्मेदार जॉर्ज स्टॉज़िल्जकोविच ने फिल्म के हर सीन को एक आर्ट फॉर्म का रूप दे दिया है। कोटागिरी वेंकटेश्वर राव द्वारा संपादन किया गया है, जो फिल्म को एक पर्फेक्ट पेस देता है। संतोश नारायण द्वारा दिया गया संगीत एक अलग ही माहौल बना देता है जो फिल्म के मूड के साथ बिल्कुल मेल खाता है।

फिल्म की कहानी 2898 ईस्वी में सेट है, जो वर्तमान युग से कई सौ साल आगे की है। यह फ्यूचरिस्टिक फिल्म है जिसमें नवाचार और उन्नत प्रौद्योगिकी की झलक मिलती है। फिल्म के निर्देशक नाग अश्विन ने इस दुनिया को जितनी बारीकी से और भव्यता से खड़ा किया है, वह काबिले तारीफ है।

कहानी की अनोखी दिशा

फिल्म की कहानी बेहद जटिल और रोमांचक है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आने वाले समय में मानव जीवन बदल सकता है और किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। फिल्म की शुरुआत एक भव्य सेटअप से होती है, जो दर्शकों को फिल्म के अंदर खींच लेता है। कहानी में रोमांच, भावनाएं और सोचने पर मजबूर करने वाले मोड़ भी हैं।

प्रदर्शन और दर्शकों की प्रतिक्रिया

फिल्म को 27 जून, 2024 को रिलीज किया गया था, और तब से इसे मिश्रित समीक्षाएं मिल रही हैं। कुछ लोगों ने फिल्म की उन्नत प्रौद्योगिकी और नई अवधारणा की तारीफ की है, जबकि कुछ ने इसे थोड़ा लंबा और जटिल बताया है। फिल्म को कुल मिलाकर 3/5 की रेटिंग दी गई है, जो यह बताता है कि यह फिल्म कुछ खास दर्शकों के लिए ही बनी है लेकिन उन लोगों ने इसे खूब सराहा है।

इस फिल्म ने यह साबित कर दिया है कि तेलुगु सिनेमा अब केवल पारंपरिक कथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नई और अनोखी कहानियों को भी आत्मसात कर सकता है।

Savio D'Souza

लेखक के बारे में Savio D'Souza

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।

टिप्पणि (17)
  • Nitin Thakur
    Nitin Thakur
    27.06.2024

    भाइयों हमें सच्ची कला की थाली नहीं, बल्कि जिम्मेदारी समझनी चाहिए। ऐसी भव्य फ़िल्में दर्शकों को भ्रमित कर देती हैं। मैं मानता हूँ कि मनोरंजन का दायित्व शिक्षा के साथ नहीं गूँजता। कल्की 2898 AD जैसी दिखावटी कहानी सिनेमा को पचास साल पीछे ले जाती है। हमें ठोस कहानी पर ही टिके रहना चाहिए।

  • Arya Prayoga
    Arya Prayoga
    29.06.2024

    यह फिल्म सिर्फ दिखावे की दौड़ है, दिल को छू नहीं पाई।

  • Vishal Lohar
    Vishal Lohar
    30.06.2024

    आह, मेरे प्यारे साइन-इंस्टा के मित्रों, इस फिक्शन की धारा में गहराई की कमी स्पष्ट है। यदि आप कथा की जटिलता की तलाश में थे तो यह व्यर्थ प्रयास है। निर्देशक ने बौधिक अभिप्राय को लपेटने की कोशिश की, पर वह तमाम पड़ गया। वास्तव में, ऐसा लगता है जैसे प्राचीन शास्त्रों को फ्यूचरिस्टिक लाइट्स के नीचे पिच किया गया हो।

  • Vinay Chaurasiya
    Vinay Chaurasiya
    2.07.2024

    क्या बात है, इस फिल्म में, बहुत अधिक तकनीकी चमक, लेकिन कहानी, कहीं खो गई है, है ना!?

  • Selva Rajesh
    Selva Rajesh
    3.07.2024

    ओह भई, तुम्हारी बात में झाँकते ही मेरी रागिनी भर गई! यह फ़िल्म मानो एक घूमता हुआ स्याह बिंदु, जो हमें अंधेरे में रोशन करता है, फिर भी क्षणिक! इस सीन को देख कर मेरी आत्मा में झंकार उठी, जैसे हीरे के टुकड़े पर बिखरता प्रकाश।

  • Ajay Kumar
    Ajay Kumar
    5.07.2024

    कथात्मक धारा को एक नदी मानो-संग्लन में गहराई होती है, पर यहाँ केवल सतह पर छलकाव है।

  • Ravi Atif
    Ravi Atif
    6.07.2024

    मैं तो बस देखा कि फ़िल्म की स्क्रीन पर लाइट्स का खेल बड़ा ही मस्त है 😊
    पर कहानी में वो चीर-फ़ाड़ वाले ट्विस्ट शायद कुछ लोगों को उलझन में डाल रहे हैं।
    सर्विसिंग टाइमलाइन को थोड़ा टाइट करना चाहिए था, नहीं तो दर्शक बोरियत में डूब जाते।
    फिर भी, एन्हांस्ड विजुअल्स ने सीन को इफ़ेक्टिव बनाया! 🎬

  • Krish Solanki
    Krish Solanki
    8.07.2024

    संदेह उपजता है जब हम देखते हैं कि उच्च बजट के बावजूद, कथा संरचना में कोई ठोस तर्क नहीं है। इस प्रकार की निर्मितियों का प्रभाव अपरिवर्तनीय और निरर्थक है। स्पष्ट है कि प्रोडक्शन टीम ने शैली को कथा से अधिक प्राथमिकता दी।

  • SHAKTI SINGH SHEKHAWAT
    SHAKTI SINGH SHEKHAWAT
    9.07.2024

    उपरोक्त चित्रण में हमें एक गुप्त तंत्र का संकेत मिलता है-जो कि गुप्त रूप से विश्व स्तर पर हुए तकनीकी हस्तक्षेप का प्रतिबिंब है। यह फ़िल्म संभवतः छिपी हुई एजेंसियों द्वारा जनसचेतना को मोड़ने के लिए प्रयुक्त की गई एक उत्तेजक सामग्री है। प्रतीत होता है कि इसमें प्रयोग किए गए विशेष प्रभाव वास्तविक विज्ञान की अग्रिम खोजों पर आधारित हैं, जिनका सार्वजनिक परिप्रेक्ष्य अभी तक उजागर नहीं हुआ।

  • sona saoirse
    sona saoirse
    11.07.2024

    असलीमेँ ये फ़िल्म तो ठीक ना हे आवाज़ मझे रेटिंग नाचिस्‍। कोसिस करो कि सलोक्वॉल में फ़िकर करो।

  • VALLI M N
    VALLI M N
    12.07.2024

    भाईयो और बहनो, हमारे भारतीय सिनेमा को ऐसे दिखावे की जरूरत नहीं है! यह फ़िल्म हमारी विरासत को धुंधला कर रही है!! देश के गौरवशाली इतिहास को याद रखें, ऐसे फैंटेसी को छोड़ो!! 😊🇮🇳

  • Aparajita Mishra
    Aparajita Mishra
    14.07.2024

    ओह वाह, क्या बैस्ट! ऐसे तो हर फ़िल्म को सितारा बनाते हैं 😂 लेकिन सच्चाई ये है कि गांव के लोग भी इस फैंटेसी में नहीं उछालेंगे। चलो, थोड़ा ठोस काम करो, फिर देखेंगे।

  • Shiva Sharifi
    Shiva Sharifi
    15.07.2024

    अगर आप टेक्नॉलॉजी देखना चाहो तो इस फ़िल्म में VFX अच्छा है, पर कहानी को समझना थोडा कठिन है। अगले बार कोशिश करो कि स्क्रिप्ट में मोड़ साफ़ हों।

  • Ayush Dhingra
    Ayush Dhingra
    17.07.2024

    बहुत बढिया बात है कि VFX तो धाकड़ है लेकिन कहानी की जड़ में सच्ची भावना नहीं दिखती। कभी‑कभी हमें बस एंटरटेनमेंट चाहिए, तो ठीक है। पर जब कहानी गड़बड़ हो, तो दर्शक झुंझलाते हैं। अंत में, फ़िल्म का संदेश थोड़ा अस्पष्ट रहा।

  • Vineet Sharma
    Vineet Sharma
    18.07.2024

    देखा-देखा, इतनी भविष्यवादी सेटिंग के साथ भी अगर दिल नहीं छुती तो क्या था यह सब? बहुत अनिवार्य लगती है।

  • Aswathy Nambiar
    Aswathy Nambiar
    20.07.2024

    आइडियाज़ तो एग्जिस्ट है बैट लोह में टॉर्‍च है, ख्यालों की रचना प्रॉब्लेम है। जेनिस आम शाब्दिक? 🤔

  • Ashish Verma
    Ashish Verma
    21.07.2024

    हमारी इंडियाई संस्कृति में भविष्य की कल्पना हमेशा से कहानी का हिस्सा रही है 🌟
    फिलहाल इस फ़िल्म ने तकनीकी सौंदर्य को बढ़ावा दिया, पर हमें अपनी जड़ों को भी नहीं भूलना चाहिए। 🎥🇮🇳

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