फिल्म 'देवा' में शाहिद कपूर ने बगावती पुलिस अफसर के रूप में की अद्वितीय प्रदर्शन की अदाकारी

  • घर
  • फिल्म 'देवा' में शाहिद कपूर ने बगावती पुलिस अफसर के रूप में की अद्वितीय प्रदर्शन की अदाकारी
फिल्म 'देवा' में शाहिद कपूर ने बगावती पुलिस अफसर के रूप में की अद्वितीय प्रदर्शन की अदाकारी

'देवा' फिल्म समीक्षा: एक बगावती पुलिस अफसर की कहानी

फिल्म 'देवा' में शाहिद कपूर ने देवा अंब्रे के किरदार में एक शक्तिशाली और बगावती पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है, जो अपने दोस्त रोशन डी'सिल्वा की मौत का बदला लेने के लिए संघर्ष कर रहा है। इस फिल्म में निर्देशक रोशन एंड्र्यूज ने दर्शकों को एक पारंपरिक पुलिस फिल्म से अलग अनुभव देने का प्रयास किया है। फिल्म के शुरुआत में देवा अपनी बाइक पर सवारी करता दिखाई देता है, लेकिन जल्द ही एक दुर्घटना में उसकी स्मृति खो जाती है और कहानी एक रोमांचक मोड़ पर पहुंच जाती है।

फिल्म के कथानक का केंद्रबिंदु देवा का गुस्सा और उसके पीछे छिपा हुआ उसका मानसिक संघर्ष है। यह फिल्म गहरे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से दर्शाती है कि कैसे अतीत के आघात ने देवा के स्वभाव को आकार दिया है। यह कहानी दर्शकों को एक उग्र युवा पुलिस अधिकारी के दृष्टिकोण से न्याय की खोज पर अध्ययन कराने का प्रयास करती है।

देवा का मानसिक संघर्ष और याददाश्त की पृष्ठभूमि

फिल्म का प्रमुख आकर्षण इसका जटिल कथानक है जहां देवा की स्मृति घटित दुर्घटना के बाद एक महत्वपूर्ण मोड़ लेती है। अस्पताल में उसका सामना फरहान (पर्वेश राणा) से होता है, और उसके लिए यह मानना मुश्किल होता है कि कुछ घटनाएं वह याद नहीं कर पा रहा। इसके बीच, येरवदा जेल से भागकर बागी बने अपराधी प्रभात जाधव शहर में आतंक फैलाते हैं।

फिल्म में राजनेता आप्टे के रूप में एक सजीव राजनीतिक संघर्ष भी देखने को मिलता है, जो पावर की तलाश में किसी भी हद तक जाने को तैयार है। यह सभी कहानी के भीतर तनाव को और बढ़ाते हैं, जबकि देवा अपने दोस्त की मृत्यु के पीछे की कड़ियाँ खोजने का प्रयास करता है।

लव स्टोरी और फिल्म की म्यूजिक

फिल्म की कहानी में प्रेम कहानी का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें देवा की प्रेमिका दिया की भूमिका में पूजा हेगड़े दिखाई देती हैं। उनकी और देवा की केमिस्ट्री देखना दर्शकों को आकर्षित करता है। हालाँकि, इनकी स्क्रीन टाइम थोड़ी कम है, लेकिन जितनी भी है, वह कहानी को और प्रभावित करती है।

जहां तक फिल्म की ध्वनि और गीतों की बात है, तो वे निश्चित रूप से ध्यान खींचते हैं। शाहिद कपूर को नाचते देखना दर्शकों के लिए एक दर्शनीय दृश्य बनता है। हालांकि, कभी-कभार कहानी कुछ धीमी लग सकती है, लेकिन अंत में यह एकरूप होकर देने में सफल होती है।

प्रदर्शन और निर्देशन

फिल्म के निर्देशकीय दृष्टिकोण से लेकर अदाकारी तक, 'देवा' को एक संतुलित और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। शाहिद कपूर ने अपनी भूमिका को पूर्णता के साथ निभाया है और दर्शकों को एक उग्र लेकिन संवेदनशील पुलिस अफसर का एहसास करवाने में सफल होते हैं।

निर्देशक रोशन एंड्र्यूज ने कहानी को जागरूक तथा प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है। वह फिल्म के अनेक चरित्रों के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने का प्रयास करते दिखते हैं। फिल्म को अपनी दर्शकीयता के लिए तीन में से पांच सितारों की रेटिंग दी गई है, जो इसका एक सकारात्मक पक्ष है।

Savio D'Souza

लेखक के बारे में Savio D'Souza

मैं एक पत्रकार हूँ और भारतीय दैनिक समाचारों पर लिखने का काम करता हूँ। मैं राजनीति, सामाजिक मुद्दे, और आर्थिक घटनाक्रम पर विशेष ध्यान देता हूँ। अपने लेखन के माध्यम से, मैं समाज में जागरूकता बढ़ाने और सूचनात्मक संवाद को प्रेरित करने का प्रयास करता हूँ।

टिप्पणि (8)
  • Akshay Gore
    Akshay Gore
    31.01.2025

    भाई, देवा मा शाहिद की एक्टिंग उबाऊ लग रही है।

  • Vinod Mohite
    Vinod Mohite
    31.01.2025

    फिल्म की नॅरेटिव कॉम्प्लेक्सिटी को एन्कैप्सुलेट करने हेतु निर्देशक ने हाइपरडायनमिक विजुअल मोड्यूल्स को इंटीग्रेट किया है जिससे थीमैटिक एन्हांसमेंट स्पष्ट होता है

  • Rishita Swarup
    Rishita Swarup
    31.01.2025

    देवा के मनोवैज्ञानिक संघर्ष के पीछे एक गुप्त एजेंडा छिपा हो सकता है।
    सभी दर्शकों को यह नहीं बताया जाता कि इस फिल्म के कुछ दृश्यों को एक बड़े नियंत्रण प्रोग्राम के तहत कोडित किया गया था।
    जब शाहिद कपूर बैकबोन दिखाता है तो वह असल में एक संरचित एलिट समूह का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो सामाजिक अस्थिरता को प्रायोजित करता है।
    सरलीकृत कहानियों में गहरे अर्थ छुपे होते हैं और उन्हें समझने के लिए आपको मुख्यधारा की मीडिया को नजरअंदाज करना होगा।
    अभिनेता की याददाश्त की समस्या सिर्फ एक प्लॉट डिवाइस नहीं, बल्कि एक संकेत है कि मानसिक नियंत्रण तकनीकें वास्तविकता में प्रयोग हो रही हैं।
    इसलिए जब वह दुर्घटना से वाकिफ़ होता है तो वह केवल वह नहीं बल्कि एक बड़े डेटा लॉग का हिस्सा बन जाता है।
    फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक में 432 Hz की ट्यू닝 का प्रयोग किया गया है, जो पब्लिक को हिप्नोटिक स्टेट में ले जाता है।
    ऐसी ध्वनि तरंगें आमतौर पर गुप्त संगठनों द्वारा जनसंचार को सेंसिटिव बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।
    इसी कारण से दर्शकों को दिमागी समानता महसूस होती है, जैसे कि एकत्रित विचारधारा का अंगीकार।
    रहस्यमयी जेल से भागे प्रहात जाधव की भूमिका को भी एक कोडेड सन्देश माना जा सकता है जो मौजूदा सत्ता संरचना को चुनौती देता है।
    सम्पूर्ण फिल्म को एक बड़े सिमुलेशन के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ प्रत्येक पात्र एक परीक्षण इकाई है।
    अब जब आप कहानी को पुनः देखें तो आप देखेंगे कि कई दृश्य दोहराए गए पैटर्न से भरे हैं।
    इन पैटर्न में छिपे संकेत यह दर्शाते हैं कि फिल्म का वास्तविक लक्ष्य दर्शकों को सोचना नहीं, बल्कि उन्हें एक निर्देशित सोच में ले जाना है।
    अंत में, देवा का व्यक्तिगत बदलाव सिर्फ एक दर्शनीय मोड़ नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक रीसेट है।
    इसे समझना मुश्किल हो सकता है लेकिन अगर आप इस कोड को डिकोड करेंगे तो पता चलेगा कि फिल्म का मूल उद्देश्य क्या है।

  • anuj aggarwal
    anuj aggarwal
    31.01.2025

    देखो, तुम लोग इस फिल्म को महिमा दिहा रहे हो जबकि असल में यह सिर्फ एक कॉमर्शियल क्लिश है, कहानी में कोई गहराई नहीं और शाहिद का एग्रेसिव एन्जिन सिर्फ शोकेस के लिए है, समझ नहीं रहा कोई कि तुम सब इस बकवास को क्यों सराहते हो, ये फिल्म कुछ नहीं परन्तु एक बार फिर बॉक्स ऑफिस को भरने की कोशिश है, मैं इस तरह के हल्के-फुल्के मसालेदार ड्रामा का समर्थन नहीं करता।

  • Sony Lis Saputra
    Sony Lis Saputra
    1.02.2025

    यार, फिल्म में शाहिद का एग्रेसिव साइड वाकई में लाइट हिट है, उसने एक मजबूत इमेज दोबारा स्थापित किया है और भले ही कहानी में कुछ झटके हैं, पर कुल मिलाकर एक एंट्री लेवल एक्शन पिक्चर है जो दर्शकों को एंटरटेिनमेंट देता है, मैं देख रहा था तो लगा कि पॉप कॉर्न और थ्रिल का मिश्रण ठीक है, चलो इसे एन्जॉय करते हैं और आगे की फिल्मों में थोड़ा और डेप्थ देखना चाहते हैं।

  • Kirti Sihag
    Kirti Sihag
    1.02.2025

    ओह माय गॉड, ये फिल्म तो एंट्री लेवल पर ही फेल हो गई 🙈😅, शाहिद की एक्टिंग कभी धूमधाम वाली तो कभी बेकार, संगीत तो बस बैकग्राउंड में गूँजता रहता है और कहानी का हर मोड़ वैसे ही दोहराव वाला लगता है 😭🔥, सच में, इस पिज़ा के टॉपिंग की तरह चीज़ें बिखरी हुई हैं, कोई भी कनेक्शन नहीं बन पा रहा, दिल से आशा है कि अगली बार बेहतर कुछ आएगा।

  • Vibhuti Pandya
    Vibhuti Pandya
    1.02.2025

    सभी को नमस्कार, मैं इस फिल्म के विभिन्न पहलुओं को लेकर थोड़ा विचार साझा करना चाहता हूँ, जहाँ शाहिद कपूर ने एक बगावती पुलिस अफसर का रोल निभाया है, वह जटिल भावनाओं को सहजता से पेश कर पाते हैं, हालांकि कहानी में कुछ स्थानों पर गति धीमी लग सकती है, पर समग्र रूप से फिल्म की दृश्यात्मक प्रस्तुति और संगीत ने अच्छा काम किया है, आशा है कि दर्शक इसे संतुलित रूप में देखेंगे और निर्माता भविष्य में कहानी के पेसिंग पर भी ध्यान देंगे।

  • Aayushi Tewari
    Aayushi Tewari
    1.02.2025

    समग्र रूप में फिल्म की कथा संरचना सुसंगत है, जबकि पात्रों की मनोवैज्ञानिक गहराई में कुछ असंगतताएँ दिखाई देती हैं, निर्देशक ने दृश्यात्मक शैली को सुगम बनाया है परन्तु संवादों में दोहराव की प्रवृत्ति देखी जा सकती है, इसलिए दर्शकों को सुझाव देता हूँ कि अगले प्रोजेक्ट में संवाद लेखन को परिष्कृत किया जाए।

एक टिप्पणी लिखें