आयकर से जुड़ी हर बात – जानकारी, टिप्स और अपडेट
जब आप आयकर, व्यक्तियों और कंपनियों की आय पर लागू होने वाला भारतीय टैक्स, इनकम टैक्स की चर्चा सुनते हैं तो तुरंत सवाल उठते हैं – कब, कैसे, कितना? साथ ही आयकर रिटर्न, वर्षअन्त में तैयार किया जाने वाला फॉर्म जो आय और छूट की घोषणा करता है और आयकर विभाग, सरकारी एजेंसी जो टैक्स संग्रह, जांच और नीति बनाती है भी सामने आते हैं। इन तीन मुख्य इकाइयों को समझना टैक्स फाइलिंग को आसान बनाता है, क्योंकि आयकर का दायरा सिर्फ भुगतान नहीं बल्कि सही योजना और बचत भी है।
पहला सम्बन्ध यह है कि आयकर रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य है जब किसी की कुल आय वित्तीय वर्ष में तय सीमा से ऊपर जाती है। रिटर्न दो मुख्य स्वरूपों में आता है – ITR‑1 (सैलरीपेहर्सन) और ITR‑4 (सुइट‑बिजनेस)। सही फॉर्म चुनना जरूरी है, क्योंकि इसका सीधा असर टैक्स कैलकुलेशन और संभावित रिफंड पर पड़ता है। दूसरा सम्बन्ध यह है कि आयकर विभाग रिटर्न की वैधता जाँचता है, ऑडिट या नोटिस जारी कर सकता है, और समय पर compliance न करने पर पेनाल्टी लगाता है। इसलिए रिटर्न भरते समय सभी दस्तावेज़ जैसे फॉर्म‑16, बैंक स्टेटमेंट और निवेश प्रमाणपत्र तैयार रखना चाहिए।
मुख्य टैक्स छूट और बचत के उपाय
आयकर में बचत का सबसे बड़ा अवसर सेक्शन 80C, 80D, 80G आदि के तहत उपलब्ध छूटों में निहित है। 80C के तहत आप जीवन‑बीमा, पीपीएफ, एनएससी, इक्विटी‑एफआईआई फंड आदि में सालाना अधिकतम 1.5 लाख रुपये की कटौती ले सकते हैं। 80D स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर देनदारी घटाता है, जबकि 80G दान पर दानराशि का हिस्सा घटाता है। इन छूटों का सही उपयोग करने से आपका टैक्स लायबिलिटी काफी घट सकती है, खासकर जब आप फॉर्म‑16 में दिखाए गए टैक्सेबल इनकम को घटाकर वास्तविक कर योग्य आय को कम करते हैं।
तीसरा प्रमुख सम्बन्ध यह है कि फॉर्म‑16, जो नियोक्ता द्वारा जारी किया जाता है, आयकर रिटर्न का आधार बनता है। इसमें टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS) की पूरी जानकारी, ग्रॉस वेज, प्रोवाइडेड ग्रैच्युइटी इत्यादि शामिल होते हैं। फॉर्म‑16 को सही से पढ़कर आप देख सकते हैं कि आपके नियोक्ता ने कितना टैक्स काटा और क्या वह आपके वास्तविक आय के अनुसार है। यदि कमी या अधिक कटौती पाई जाती है तो रिटर्न फाइल करते समय अतिरिक्त भुगतान या रिफंड का दावा किया जा सकता है।
चौथा सम्बन्ध आयकर विभाग की वैधता प्रक्रिया से जुड़ा है। विभाग ई‑वायल, निकट‑संपर्क सेवा (NCS) और ऑनलाइन पोर्टल (आधार) के माध्यम से रिटर्न दर्जियों को ट्रैक करता है। इस प्लेटफ़ॉर्म से टैक्सपेयर अपनी रिटर्न स्टेटस, रिफंड की स्थिति और एएसआर (अडवांस टैक्स) की जानकारी तुरंत देख सकते हैं। इसलिए, ऑनलाइन पोर्टल पर नियमित रूप से लॉग‑इन करना और नोटिफिकेशन पर कार्रवाई करना फाइलिंग की सटीकता बढ़ाता है।
पाँचवाँ महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि आयकर नियमों में समय‑समय पर परिवर्तन होते रहते हैं – जैसे 2023‑24 के बजट में नई स्लैब, वर्गीकरण और टैक्स‑हैवेस्टिंग योजना के बदलाव। इन बदलावों को पहचानना और लागू करना कर बचत के लिये जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, यदि नई नीति में इन्कम स्लैब में वृद्धि हुई है तो आपकी टैक्स फ्रेमिंग भी बदलनी पड़ेगी, जिससे आप पहले से अधिक बचत कर सकते हैं।
अंत में, आयकर से जुड़े सभी तत्वों को एक साथ देखना बेहतर रणनीति बनाता है। जब आप आयकर रिटर्न, आयकर छूट, फॉर्म‑16 और आयकर विभाग की प्रक्रियाओं को एक ही फ्रेम में समझते हैं, तो आप न केवल अपना टैक्स सही से फ़ाइल करते हैं बल्कि मिलने वाली रिफंड या बचत को भी अधिकतम कर सकते हैं। अब आप तैयार हैं कि आने वाले लेखों में विशिष्ट केस स्टडी, टूल सुझाव और FAQs पाएँगे, जो आपके टैक्स प्लान को और आसान बनाएंगे।
CBDT ने टैक्स ऑडिट डेडलाइन बढ़ाई: अब 31 अक्टूबर 2025 तक जमा कर सकते हैं
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए टैक्स ऑडिट रिपोर्ट की जमा करने की अंतिम तिथि को 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 अक्टूबर 2025 कर दी है। यह कदम कई प्रोफेशनल संघों की मांगों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई कठिनाइयों के बाद लिया गया है। पोर्टल के तकनीकी प्रदर्शन में कोई बाधा नहीं बताई गई, जबकि अब तक 4.02 लाख रिपोर्टें अपलोड हो चुकी हैं। यह विस्तार कॉरपोरेट एवं गैर‑कॉरपोरेट करदाताओं दोनों के लिए लागू होगा।
- के द्वारा प्रकाशित किया गया Savio D'Souza
- 26 सितंबर 2025
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