मधापार
मधापार एक ऐसा बिंदु है जहाँ मधापार, भारत के राजनीतिक, आर्थिक और खेल संस्कृति के बीच का संपर्क स्थान है बन जाता है। यहाँ किसानों की आय का निर्णय लिया जाता है, श्रमिकों के अधिकार निर्धारित होते हैं, और क्रिकेट के रिकॉर्ड तोड़े जाते हैं। मधापार बस एक शब्द नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है जहाँ गाँव की धूल और शहर की चमक एक साथ बहती है।
यहाँ PM Kisan, किसानों को सीधे खाते में 2000 रुपये देने वाली योजना का 21वाँ भुगतान बिहार चुनाव से पहले आया। इसी तरह, लेबर कोड, 40 करोड़ श्रमिकों के लिए एकीकृत सामाजिक सुरक्षा का नया ढांचा 21 नवंबर 2025 को लागू हुआ, जिससे 29 पुराने कानून खत्म हो गए। इन दोनों बदलावों का असर उत्तर भारत के गाँवों में दिख रहा है, जहाँ एक ओर किसान अपनी किस्त का इंतज़ार कर रहा है, तो दूसरी ओर गिग वर्कर्स अपने पहले कानूनी अधिकारों को समझ रहे हैं।
खेल के मैदान पर भी मधापार का असर दिख रहा है। टी20आई, भारतीय और विदेशी खिलाड़ियों के बीच बनने वाली रिकॉर्ड और तुलना का मंच अब एक नए आयाम को छू रहा है। टिम डेविड ने सूर्यकुमार यादव का रिकॉर्ड तोड़ा, इश सोधी ने 4-12 के आँकड़े लगाए, और भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर एक नया मोड़ बनाया। ये सब वो घटनाएँ हैं जो मधापार के बीच खेल को एक नए आयाम देती हैं।
यहाँ आपको ऐसी ही खबरें मिलेंगी — जहाँ राजनीति गाँव तक पहुँचती है, अर्थव्यवस्था श्रमिक के बैंक खाते तक जाती है, और खेल का जश्न शहर के स्टेडियम से लेकर गाँव के खेल के मैदान तक फैल जाता है। ये सभी खबरें एक ही धागे में बंधी हैं: मधापार।
मधापार: भारत का सबसे अमीर गाँव, जहाँ हर घर के पास ₹15-20 लाख, दिल्ली-मुंबई-बैंगलोर से भी ज्यादा धन
मधापार, गुजरात का एक गाँव, जहाँ 7,600 घरों के पास ₹5,000 करोड़ की बैंक जमा है, जो दिल्ली-मुंबई-बैंगलोर से भी ज्यादा है। ये धन एनआरआई लोगों की रेमिटेंस से आया है, जो अपनी जड़ों को नहीं भूले।
- के द्वारा प्रकाशित किया गया Savio D'Souza
- 5 दिसंबर 2025
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