
रूस के S‑400 का भारत में 2025 तक डिलीवरी, पुटिन‑मोदी बैठक में चर्चा
रूस के S‑400 का भारत में 2025‑2026 में डिलीवरी पूरा, ऑपरेशन सिंधूर में सफलता, और आगे S‑500 की खोज. प्रमुख अधिकारी और अंतरराष्ट्रीय प्रभावों की ताज़ा जानकारी.
और अधिकजब हम S‑400, रूस की सबसे उन्नत एंटी‑एयरक्राफ्ट रक्षा प्रणाली, जिसका आधिकारिक नाम ‘ट्रायलेन’ है. Also known as स‑400 ट्रायलेन, it provides भारत सहित कई देशों को उच्च‑स्तरीय हवाई सुरक्षा के विकल्प देता है। यह प्रणाली S‑400 शब्द को आज की रक्षा चर्चाओं में सबसे प्रमुख बनाता है, क्योंकि यह रेंज, एकाधिक लक्ष्य ट्रैकिंग और विभिन्न प्रकार की लँडिंग‑बेस्ड मिसाइलों को एक साथ लॉन्च करने की क्षमता रखती है।
सिस्टम को समझने के लिए पहले रूसी रक्षा उद्योग, रूस के प्रमुख हथियार निर्माताओं में से एक, जो स‑400 जैसे जटिल सिस्टम को डिजाइन और निर्मित करता है की भूमिका देखनी चाहिए। इस उद्योग ने स‑400 को पाँच‑वर्षीय विकास प्रक्रिया में बनाकर इसे 1990‑के दशक में पहली बार प्रदर्शित किया। सिस्टम में 48‑मीटर रडार, कमांड‑कंट्रोल मॉड्यूल और कई प्रकार की रेंज‑मिसाइलें जैसे 48N6, 9M96 शामिल हैं, जो 40 किमी से 400 किमी तक के लक्ष्य को मार सकती हैं। इन क्षमताओं के कारण NATO ने इसे सबसे चुनौतीपूर्ण एंटी‑एयरक्राफ्ट समाधान माना है।
अब बात करें एंटी‑एयरक्राफ्ट मिसाइल, ऐसी मिसाइलें जो दुश्मन के विमान, हेलिकॉप्टर या बलिस्टिक मिसाइल को हवा में ही नष्ट कर सकती हैं की। स‑400 के पास 10 से अधिक विभिन्न प्रकार की मिसाइलों को स्टोर कर रखने की सुविधा है, जिससे वह एक ही समय में कई लक्ष्य पर एकत्रित प्रतिक्रिया दे सकता है। इसका फ़ायदा यह है कि समुचित रडार प्रोफ़ाइलिंग के बाद, प्रणाली स्वचालित रूप से सबसे उपयुक्त मिसाइल का चयन कर देती है, जिससे प्रतिक्रिया समय कुछ सेकंड में घट जाता है। इस तेज़ी ने स‑400 को कई संघर्ष क्षेत्रों में "स्ट्रैटेजिक डिटरेंटर" की श्रेणी में ला दिया है।
जब भारत ने 2020 में स‑400 खरीदने की घोषणा की, तो यह बात सिर्फ एक खरीद नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिभाषा का परिवर्तन था। भारत के रक्षा मंत्रालय, वह सरकारी विभाग जो देश की रक्षा नीतियों और योजनाओं को संचालित करता है ने इस कदम को "हमारी हवाई सुरक्षा की क्षितिज को विस्तार" के रूप में पेश किया। स‑400 की डील में 18 सिस्टम, 150 वर्षा‑किलॉमीटर‑सेकंड तक की रडार कवर और एकीकृत कमांड नेटवर्क शामिल था। इस कारण भारत को न केवल समुद्री और सीमाई सुरक्षा में बल मिलता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी रणनीतिक आवाज़ भी मजबूत होती है।
सिस्टम की प्रभावशीलता को समझाने के लिए एक वास्तविक उदाहरण देखें: दक्षिण एशिया में तिव्र तनाव के दौरान स‑400 ने अपने रडार के माध्यम से संभावित इनकमिंग हॉराइजन‑क्लास ध्वनि से संकेत पकड़े, जिससे रक्षा बल को समय पर एंटी‑एयरक्राफ्ट तैनात करने का मौका मिला। इस तरह के परिदृश्य दर्शाते हैं कि स‑400 केवल तकनीकी उपकरण नहीं, बल्कि व्यापक सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में एक "रिवर्सिबल एसेट" है। इसी कारण कई विश्व शक्ति, जिनमें NATO सदस्य भी शामिल हैं, स‑400 को अपने मौजूदा एंटी‑एयरक्राफ्ट नेटवर्क के साथ एकीकृत करने के संभावित जोखिमों पर चर्चा करती हैं।
• रेंज: 40 किमी से 400 किमी तक, लक्ष्य के प्रकार के हिसाब से • एकाधिक लक्ष्य ट्रैकिंग: एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर 100 से अधिक लक्ष्य को एक साथ मॉनिटर कर सकता है • मॉड्यूलर डिज़ाइन: विभिन्न प्रकार की मिसाइलें और रडार मॉड्यूल को आसानी से अपग्रेड किया जा सकता है • इंटीग्रेटेड कमांड‑कंट्रोल: मौजूदा राष्ट्रीय एंटी‑एयरक्राफ्ट नेटवर्क के साथ सहजता से कनेक्ट हो सकता है
इस विस्तृत परिचय को पढ़ने के बाद आप देखेंगे कि स‑400 क्यों कई देशों की रक्षा रणनीति में कोर बना है। नीचे आने वाले लेखों में हम स‑400 के अपडेट, भारत में इसे लागू करने की प्रगति, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके व्यावसायिक और राजनैतिक असर को गहराई से देखेंगे। इन जानकारियों से आप रणनीतिक निर्णयों, तकनीकी विशेषताओं और भविष्य की संभावनाओं को बेहतर समझ पाएंगे।
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