श्रम सुधार: भारत में कामकाजी नियमों में बदलाव क्या लाए?

जब बात आती है श्रम सुधार, भारत में कामकाजी नियमों और श्रमिकों के अधिकारों को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया. यह एक ऐसा बदलाव है जो कारखानों, ऑफिसों और ग्रामीण बाजारों तक के लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी को छूता है। ये सुधार केवल कानून बदलने तक ही सीमित नहीं हैं — ये उन लोगों के लिए नए अवसर बनते हैं जिन्हें पहले नज़रअंदाज़ किया जाता था।

इसके तहत कामकाजी नियम, श्रमिकों के लिए घंटे, वेतन, सुरक्षा और छुट्टियों के नियम एक नए ढांचे में आए हैं। श्रमिक अधिकार, काम करने वालों के लिए न्याय, सुरक्षा और आवाज़ उठाने का अधिकार अब कानूनी तौर पर मजबूत हुए हैं। इनमें से कुछ बदलाव तो ऐसे हैं जिन्होंने छोटे उद्यमियों को भी नए नियमों के तहत काम करने की आजादी दी है। दूसरी ओर, कारखाने नियम, उन जगहों के लिए लागू नियम जहाँ मशीनें चलती हैं और लोग रोज़ाना घंटों काम करते हैं अब ज़्यादा पारदर्शी और लचीले हो गए हैं।

श्रम सुधार का मकसद सिर्फ़ नियम बदलना नहीं, बल्कि इंसानों को उनके काम के लिए इज्ज़त देना है। जब एक मज़दूर अपनी आय के बारे में स्पष्ट रूप से जानता है, या जब एक महिला कार्यकर्ता को आराम का अधिकार मिलता है, तो ये बदलाव बस कागज़ पर नहीं, बल्कि ज़िंदगी में दिखते हैं। यहाँ आपको ऐसे ही असली कहानियाँ मिलेंगी — जहाँ नीतियाँ बदलीं, लोग जग उठे, और काम का माहौल अलग हो गया।

नीचे दिए गए पोस्ट्स में आप देखेंगे कि श्रम सुधार के तहत किस तरह के फैसले लिए गए हैं, किन राज्यों में ये असर दिखे हैं, और किन श्रमिकों को इससे सबसे ज़्यादा फायदा हुआ।

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